 Published By:बजरंग लाल शर्मा
 Published By:बजरंग लाल शर्मा
					 
					
                    
1- स्वप्न की रचना नींद में होती है।
2- स्वप्न का पात्र नींद में बनता है।
3- नींद, स्वप्न की रचना करने वाले के भीतर चित्त में होती है तथा स्वप्न के पात्र भी उसके भीतर बनते हैं।
4- स्वप्न की रचना करने वाला दृष्टा होता है तथा स्वप्न में बनने वाले पात्र दृश्य होते हैं।
5- स्वप्न में बनने वाले दृश्य पात्र मिटने वाले होते हैं, असत्य होते हैं।
6- स्वप्न में बनने वाले दृश्य पात्र नींद के बाहर नहीं आ सकते हैं।
7- स्वप्न की रचना करने वाला जो दृष्टा है वह अपने स्वप्न में प्रवेश नहीं कर सकता है।
8- स्वप्न की रचना करने वाले का मन ही रचना करता है नींद में यदि रचना करने वाले का मन भी सो जाता है तब स्वप्न की रचना नहीं हो सकती है।
9- रचना इच्छा के बिना नहीं हो सकती है, इच्छा मन में होती है। इच्छा रहित मन रचना नहीं कर सकता है।
10- स्वप्न की रचना करने के लिए निम्न तत्वों की आवश्यकता होती है-
इच्छा, मन, चित्त, शरीर (स्थूल), नींद |
11- जिसके पास शरीर का आकार नहीं होता है, वह (निराकार) स्वप्न की रचना नहीं कर सकता है।
12- इच्छा को ही शास्त्रों में प्रकृति अथवा माया कहा गया है।
13- माया अथवा इच्छा के तीन अंगों के द्वारा ही रचना होती है। ये तीन अंग हैं - तमोगुण, रजोगुण, सतोगुण।
14- किसी भी कार्य का कारण होता है और वह कारण है इच्छा। इच्छा की उत्पत्ति रचना करने वाले के चित्त में विचारों के रूप में तीन गुणों के द्वारा होती है। इन विचारों को ही चित्त की वृत्तियाँ कहते हैं।
15- तमोगुण से किसी को हानि पहुंचाने के विचार प्रकट होते हैं। रजोगुण से स्वयं के स्वार्थ के विचार प्रकट होते हैं तथा सतोगुण से परोपकार के विचार प्रकट होते हैं। ये विचारों के पुंज ही चित्त की वृत्तियां हैं।
बजरंग लाल शर्मा
 
 
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