1. पुनर्वित्तं पुनर्मित्रं पुनर्भार्या पुनर्मही।
एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः।।
- नष्ट या खर्च हुआ धन पुनः प्राप्त हो जाता है, रूठे हुए, बिछड़े हुए मित्र पुनः मिल जाते हैं। या नये मित्र बन जाते हैं, पत्नी के बिछोह, परित्याग या देहावसान हो जाने पर दूसरी पत्नी मिल जाती। है, जमीन-जायदाद, देश राज्य सब पुनः मिल जाते है, पर यह मनुष्य शरीर बार-बार नहीं मिलता।
2. दुर्लभं त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम्।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुष संश्रयः।।
- मनुष्यत्व, मोक्ष प्राप्ति की इच्छा और श्रेष्ठ पुरुषों की संगति ये तीनों दुर्लभ हैं और प्रभु कृपा से ही प्राप्त होते हैं। (प्रभु की कृपा सदाचारी को ही उपलब्ध होती है।)
3. बड़े भाग मानुष तन पावा।
सुर दुर्लभ सब ग्रन्थहिं गावा।।
- सारे ग्रन्थ यही कहते हैं कि जीवात्मा को मनुष्य तन बड़े भाग्य (पुण्य बल) से ही प्राप्त होता है।
मनुष्य योनि दुर्लभ क्यों है मनुष्य योनि का हिंदू धर्म में क्या महत्व बताया गया है मनुष्य योनि का सदुपयोग कैसे किया जाए।
मनुष्य योनि को हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण योनि माना जाता है। मनुष्य योनि को प्राप्त करना मानव जीवन की एक महान अवसर माना जाता है, क्योंकि इसमें जीवात्मा को अपने कर्मों के फलस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति का अवसर मिलता है।
हिंदू धर्म में मनुष्य योनि को देवता द्वारा प्रदान किया गया एक बहुमुखी अवसर माना जाता है जिसमें जीवात्मा अपने कर्मों के द्वारा आध्यात्मिक विकास का मार्ग चुन सकती है।
हिंदू धर्म के अनुसार, मनुष्य योनि का प्राप्त होना अत्यधिक पुण्य के फलस्वरूप होता है। विभिन्न कर्मों के द्वारा जीवात्मा पुण्य का संचय करती है और मनुष्य योनि को प्राप्त करती है। इसलिए, मनुष्य योनि को मानव जीवन में सदुपयोग करके जीवात्मा को आध्यात्मिक विकास के लिए समर्पित किया जाना चाहिए।
मनुष्य योनि का सदुपयोग करने के लिए हमें निम्नलिखित उपायों को अपनाना चाहिए:
1. सत्संग और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेना:
सत्संग और धार्मिक संगठनों में शामिल होना, साधु-संतों के संग रहना, आध्यात्मिक गतिविधियों में भाग लेना, धार्मिक शास्त्रों का अध्ययन करना आदि मनुष्य योनि का सदुपयोग करने में सहायता कर सकते हैं।
2. कर्मयोग का अनुसरण करना:
कर्मयोग के सिद्धांतों का अनुसरण करना, अपने कर्मों को निष्काम भाव से करना, कर्मफल में आसक्ति न रखना, धर्म के आचार्यों का पालन करना मनुष्य योनि का सदुपयोग करने में मदद कर सकता है।
3. ध्यान और ध्येय पर ध्यान केंद्रित करना:
ध्यान अभ्यास करना, मन को निरंतरता से एकाग्र करना, आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए ध्येय पर ध्यान केंद्रित करना मनुष्य योनि का सदुपयोग करने में सहायता कर सकता है।
4. दान और सेवा का अभ्यास:
निःस्वार्थ भाव से दान करना, गरीबों और दुःखी लोगों की सेवा करना, समाज के प्रत्येक सदस्य के प्रति दया और सहानुभूति व्यक्त करना मनुष्य योनि का सदुपयोग करने में सहायता कर सकता है।
इन सभी उपायों को अपनाकर हम मनुष्य योनि का सदुपयोग कर सकते हैं और आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। यह धार्मिक ग्रंथों और साधु-संतों के आदर्शों पर आधारित आचार्यों और धार्मिक आचार्यों द्वारा संशोधित किया गया है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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