Published By:धर्म पुराण डेस्क

सहजता सबसे बड़ा आनंद है

लाइफ वैसी नहीं जैसी हम समझते हैं बाजार और भौतिकता ने हमें लाइफ की सही मीनिंग से दूर कर दिया है।

लाइफ क्या है और लाइफ का मकसद क्या है यह हम भूल चुके हैं। 

हमें अपनी लाइफ को ज्यादा से ज्यादा सहज और सरल क्यों बनाना चाहिए। हम अपनी लाइफ को जितना जटिल और कंपटीशन से भरेंगे उतना ही इसमें उलझते जाएंगे।

लाइफ एक गेम है इस गेम के एक खिलाड़ी हम हैं उसे हम गेम की तरह खेलेंगे तो सुख और शांति रहेगी वरना अशांति रहेगी यही अशांति अगले जन्म के लिए बीज का काम बंद करेगी और अगला जन्म और कठिन होता जाएगा।

लाइफ में कम से कम इच्छाओं के साथ संतुष्टि का होना बहुत जरूरी है यही हमारे ग्रंथों में सिखाया गया है लेकिन हम संतुष्टि की बजाय असंतुष्टि की तरफ बढ़ते हैं समभाव की बजाए अपने आपको अलग और ऊंचा दिखाने की चाह में असंभाव की तरफ बढ़ते हैं।

जीवन में सहजता ही आनंद है -

जीवन में सहजता ही सबसे बड़ा योग और सर्वोपरि आनंद है. जिसने इसे साध लिया उसने सब कुछ साध लिया. हम जैसे भी हैं उसे स्वीकार करके पहले खुद से प्यार करना सीखें, खुद को और दूसरों को गाली देना और निंदा करना बंद करें. जीवन में हर काम सहजता से करें. 

यहां तक कि भक्ति भी सायास न करें. इसके लिए तभी तक प्रयास करना पड़ता है जब तक आप सच्चा प्यार नहीं करते. सच्चे प्रेम में न तो विकार होते हैं और न ही उसे सायास साधा जाता है. 

मीरा ने कहा था- 'सहज मिले अविनाशी'. अहंकार हमारे सहज जीवन की एक बड़ी समस्या है मगर उसे भी तोड़ो मत. उस असीम से जोड़कर उसका इतना विस्तार कर डालो कि समूचा जग उसमें समाहित हो जाए और तुम 'अहम् ब्रह्मो अस्मि' तक जा पहुंचो.

उसी के जीवन में परमानंद है जो भोला भी है और विज्ञ भी, जैसे- भोलेनाथ शिव शंकर, यदि इंसान भोला होगा और मूर्ख होगा तो भी बात नहीं बनेगी और यदि विद्वान होकर कुटिल होगा तो भी बात बिगड़ जाएगी. इसके लिए जरूरी है कि हम अपनी भावनाओं का विस्तार करें और अपने अंदर गहरे और गहरे उतरने की कोशिश करें. आचरण हम स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप करें और भावनाएं विश्व जनीन रखें.

इस संसार में हम बिल्लियों और कुत्तों की तरह लड़ने के लिए नहीं आए हम पशुओं की तरह आचरण क्यों करते हैं हमें अपने मकसद को समझना चाहिए और हमारे वैदिक ग्रंथ हमें हमारा मकसद बताते हैं।

हम अपने आहार-विहार आचरण पर ध्यान देकर अपने जीवन को ईश्वर की मंशा के अनुरूप ढाल सकते हैं।

गीता का सार हमारे अंदर के सनातन धर्म को जागृत करना है वाह यह क्रियाकलाप कर्मकांड मूल सनातन धर्म नहीं है सनातन धर्म अपने अंदर की छुपी हुई शक्ति को जागृत करना अपनी आत्मा को पहचानना और अपने अनादि अनंत स्वरूप में स्थापित होना है।

भागीरथ H पुरोहित


 

धर्म जगत

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