 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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स्वेट मार्डन कहते हैं आप जैसा सोचते -विचारते हैं, आपके मुख पर वैसी ही आभा, वैसी ही कान्ति आ विराजती है।
आप अपना स्वरूप बदलने का कितना ही यत्न क्यों न करें, आपके मन की बात आपका चेहरा स्वयं कह देगा। दूसरे लोग आपकी बातों के छलावे में नहीं आ सकते, वे आपका वास्तविक स्वरूप जानते-पहचानते हैं।
आपने अनुभव किया होगा कि किसी व्यक्ति को देखने से तो आपको प्रसन्नता होती है और किसी को देखकर वितृष्णा।
कार्लाइल का कहना है कि अपने भाई के चेहरे को देखिए। यदि आपको उसमें दया और प्रेम की भावना दिखती है तो आप पर उसका कैसा प्रभाव पड़ता है और यदि उससे घृणा और क्रोध की लपटें निकलती दीखें तो कैसा प्रभाव पड़ेगा। इस प्रकार आप बताने में समर्थ होंगे कि एक से दूसरे के मन में गुण या दोषों का संचार कैसे होता है।
आपके विचार आपके जीवन पर महान प्रभाव छोड़ते हैं, परन्तु यह प्रभाव वहीं तक समाप्त नहीं हो जाते। हमारे विचार हमारे दिमाग में कैद नहीं रहते, वरन् वे अन्य प्रभावों से और दृढ़ होकर इधर-उधर फैलते रहते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि वे प्रसन्नता, असन्तोष या खिन्नता फैलाते हैं।
इमर्सन का कहना है- प्रतिभाशाली व्यक्ति जिन शुद्ध विचारों को संसार में फैलाते हैं, उनसे संसार में परिवर्तन आता है, परन्तु इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि पुस्तकों, सभाओं या बातचीत तथा गोष्ठियों आदि में प्रकट किए गए सद्विचार ही परिवर्तन लाने वाले होते हैं, वरन् हमारे अत्यंत गुप्त विचार भी फैलते हैं तथा उनका भी समाज पर प्रभाव पड़ता है।
विचारों के अनुरूप ही प्रत्येक व्यक्ति के इर्द-गिर्द उसका अपना विशिष्ट वातावरण बना रहता है। उस वातावरण में उसकी इच्छाओं, कामनाओं तथा महत्वाकांक्षाओं की गन्ध कायम रहती है और उसकी सभी चेष्टाओं से उसके विचार झलकते हैं। इसलिए जो भी व्यक्ति उसके संपर्क में आएगा, वह उसके उद्देश्य में अवश्य ही भागीदार हो जाएगा। भागो नहीं भाग्य को बदलो|
Bhagirath purohit
 
 
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