 Published By:बजरंग लाल शर्मा
 Published By:बजरंग लाल शर्मा
					 
					
                    
प्राणनाथ जी की उपरोक्त वाणी में काया (शरीर) का जीव को प्रबोधन है, काया जीव से कहती है कि - रे जीव ! तुम मुझको छोड़ कर चले गए तो क्या तुमको भी जलन हुई, परंतु मैं तो तेरे बिना खाक में ही मिल गई। जब से तुम मुझको छोड़ कर गये हो, मेरे शरीर से अलग हो गए हो। इस घर के अंदर किसी ने भी मुझे एक क्षण के लिए भी नहीं रखा।
" मेरी सेवा जो करते साथीडे, फूलडे बिछावते सेज ।
शीतल वाये मोह ढोलते, तिन जारी रेजा रेज ।। "
रे जीव जी जब तू मेरे साथ था, तो यह सभी मेरे बेटे बहुएं मेरी सेवा करते थे। मैं जब सोती थी तो मेरे बिस्तर पर फूल सजाया करते थे और मुझे ठंडी ठंडी हवा ढोलते थे। तुम्हारे जाने के बाद इन सभी अपनों ने मुझे घर में नहीं रहने दिया और लकड़ियों के अंदर जला डाला।
" मैं तो आई तुम खातर, तुम जानी नहीं सुपन।
मैं तो सुपना हो गई, अब दुखड़े देखो चेतन ।। "
रे जीव जी मैं तो यह मानव शरीर लेकर तेरे कल्याण के लिए तेरे साथ जुड़ी थी लेकिन तुम मुझ को नहीं पहचान सके। मैं तो क्षण भर के लिए सपने की तरह तेरे पास आई थी और तुम अपना कल्याण नहीं कर सके। अब पता नहीं तुम्हें कब यह मानव शरीर मिलेगा । मैं तो सपने की तरह आई थी और जा रही हूँ, परन्तु रे जीव तुम पुनः इस चौरासी लाख योनियों में भटकोगे। तुमने मेरा लाभ नहीं उठाया अब तुम भी घोर दुख प्राप्त करोगे।
" मोसो पेहेचान ना कर सके, मेरा मेला तो अधखिन होय।
मेरी तो पेहेचान जाहेर, मुझे जा ती देखे सब कोय।। "
रे जीव जी तुम मेरी पहचान नहीं कर सके। मेरा यहाँ इस संसार में जीव के साथ मिलन तो आधे क्षण का ही है। मैं जब आती हूँ तो उत्सव मनाया जाता है। मैं जाती हूँ तब भी सभी एकत्रित होते हैं तथा शोक प्रकट करते हुए कहते हैं- राम-नाम सत्य है, राम-नाम सत्य है। क्या तुम इस बात को नहीं जानते थे ?
फिर भी तुम मेरा लाभ नहीं उठा सके। तुमने केवल खाना, पीना, सोना, संतान पैदा करना, तथा उनको पालने का ही काम किया है। यह काम तो जानवर भी करते हैं। तुमने उस परमात्मा को प्राप्त करने के लिए क्या किया ? यह तो इसी मानव शरीर के द्वारा ही संभव था।
बजरंग लाल शर्मा,
 
 
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