Published By:कमल किशोर दुबे

पर्यावरण और पेड़ 

ग़ज़ल…

दुश्वार  ज़िन्दगी  न हो  अब  जाग जाइए।

व्याकुल  धरा  ये  कह रही पौधे लगाइए।।

ग़र चाहते  ज़मीं पे हो  ख़ुशहाल ज़िन्दगी,

हर  घर  में  एक  पेड़  सुधी  जन लगाइए।

भोजन, हवा, दावा, दुआ  देते हैं ये शज़र,

पर्यावरण ... सुधारने..  उपवन  सजाइये।

पेड़ों  से  ये  ज़मीं  है,  बरसते  हैं मेघ भी,

सोए  जो  गहरी नींद  में  उनको जगाइए। 

फल-फूल  प्राणवायु  व  छाया  भी  दे रहे,

वृक्षों  से  ज़िन्दगी  है  सभी  जान  जाइए।

मुद्दत से चीख-चीख  धरा  हमसे  कह रही,

काटे  बहुत  हैं  पेड़  नहीं  अब  कटाइए।

खाएँ शज़र न फल कभी, नदियाँ पियें न नीर,

क़ुदरत  की  नेमतें  सभी  मिलकर  बचाइए।

तिश्ना लबों  का  दर्द  ज़मीं  कब से कह रही,

मेरी  भी.. आरज़ू...  सभी..  पौधे  लगाइए।

पर्यावरण  के  दूत...  तपस्वी..  बड़े  शज़र,

दिल  से  कहे 'कमल'  सभी  पौधे लगाइए।

                                                       कमल किशोर दुबे


 

धर्म जगत

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