Published By:धर्म पुराण डेस्क

भक्ति में शर्तों की अनिवार्यता: एक उदाहरण से सीख

पुराने समय की एक कथा बताती है कि सच्चे भक्त के लिए भगवान के सामने किसी तरह की शर्त नहीं रखना चाहिए। कहानी यह है कि एक नया सेवक राजा के महल में नियुक्त हुआ। राजा ने उससे उसकी इच्छाएं पूछीं और सेवक ने उत्तर दिया कि मालिक जैसे रखता है, वैसे ही रहना चाहिए। यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्चे भक्त का मानना है कि भगवान से कोई शर्त नहीं रखनी चाहिए, सिर्फ भक्ति करनी चाहिए।

संकल्प का महत्व:

भक्ति में सच्चाई और समर्पण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा संकल्प है। संकल्प का अर्थ है भक्त की नीयत और संकल्पना जिससे भक्ति में पुर्नस्थापना होती है। संकल्प के द्वारा भक्त भगवान के सामने अपनी शर्तें रखता नहीं है, बल्कि वह भगवान के प्रति समर्पित रहता है।

भक्ति का सार:

सच्ची भक्ति का सार यही है कि भक्त ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और निष्ठा रखता है, बिना किसी उम्मीद या शर्त के। भक्ति एक अद्वितीय और निर्मल भावना है, जिसमें कोई विभाजन नहीं होता और भक्त केवल दिव्य प्रेम और समर्पण के साथ ईश्वर के पास जाता है।

समापन:

इस कथा के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि भक्ति में शर्तें रखना उचित नहीं है। सच्चे भक्त को सिर्फ अपनी ईश्वर भक्ति में समर्पित रहना चाहिए, उसे किसी तरह की इच्छा या आकांक्षा नहीं रखनी चाहिए। इसी तरह से, हम सभी को यह सिख मिलती है कि सच्ची भक्ति वास्तविक और निर्मल होती है, जिसमें कोई सकारात्मकता नहीं होती, सिर्फ प्रेम और समर्पण होता है।

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