Published By:धर्म पुराण डेस्क

बोधकथा प्रकृति के उपहार पर सबका अधिकार है

प्रकृति ने हमें बहुत से संसाधन दिए हैं। लेकिन हम उन संसाधनों का दोहन करने में लगे रहते हैं। हर मनुष्य सोचता है कि प्रकृति के उपहारों पर सिर्फ उसका अधिकार है लेकिन ऐसा नहीं है।

प्रकृति सबके लिए है, प्रकृति सब की है और प्रकृति के हर एक खनिज पर संसाधन पर वायु पर जल पर आकाश पर सभी मनुष्यों का बराबर अधिकार है।

सबका अधिकार है-

पुराने समय की बात है. एक राजा अपनी सेना और मंत्रियों के साथ दूसरे छोटे-छोटे राज्यों पर हमला करने निकला था. उसके राज्य के साथ इन छोटे-छोटे राज्यों की सीमाएं सटी थीं. इन राज्यों को जीत कर वह अपने राज्य की सीमा बढ़ाना चाहता था. उसके मंत्रियों में कुछ लोग ऐसे भी थे जो राजा की इस सोच से नाराज थे. 

एक दिन प्रातः राजा अपने मंत्रियों के साथ नदी किनारे टहल रहा था. उसकी सेना दिन की यात्रा की तैयारी में लगी हुई थी. आज उन्हें अगले पड़ाव की ओर कूच करना था. नदी के पानी पर सूर्य की किरणें झिलमिलाने लगी. राजा और उसके मंत्री मुखप्रक्षालन में लगे थे. 

एक सेवक पात्रों में पानी भर कर देने के लिए खड़ा था. राजा के पास खड़े एक बुजुर्ग का पानी का पात्र खाली हो गया तो उसने कहा- “अरे! अभी तो काम पूरा नहीं हुआ, लेकिन पानी समाप्त हो गया." राजा ने कहा- "सामने ही नदी बह रही है. 

जितना चाहें, पानी ले लें. सेवक आपको पानी लाकर दे देंगे." राजा की बात सुनकर उस बुजुर्ग मंत्री ने कहा- "मैं भी यह जानता हूं कि मेरे कहने से सेवक मुझे नदी से पानी लाकर दे देंगे. लेकिन, मुझे अधिक पानी अपने लिए इस्तेमाल करना ठीक नहीं लगता. यह नदी जिन प्रदेशों से होकर गुजरती है उनमें रहने वाले हजारों, लाखों लोगों का इस पर अधिकार है. मैं अपने लिए अधिक की इच्छा कर उनका हक नहीं मारना चाहता. 

मंत्री के कथन का तात्पर्य समझते राजा को देर न लगी. उसने सेनानायक को तत्काल आज्ञा दी कि वह सेना के साथ अपने राज्य का रुख करे.
 

धर्म जगत

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