यह सत्य है कि जब हम अपने मन की अनगिनत इच्छाओं के पीछे भागते हैं, तो हमें अनंत दुःख का अनुभव होता है। यह चाहतें और इच्छाएं हमें बाहरी वस्तुओं की ओर दौड़ती और हमारे मन को चंचल बनाती हैं।
आत्मज्ञान के माध्यम से हम इस चाहत और आशक्ति को शांत कर सकते हैं। योगियों और साधकों द्वारा सिद्ध किए गए अभ्यास, ध्यान और धारणा तकनीकें हमें मन को अपने साथ परमात्मा के संग संयुक्त करने में मदद करती हैं। हमें अपने मन को बांधकर रखना चाहिए, जैसे कि कर्म, भक्ति या ज्ञान की रस्सी से बांधकर। यदि हम मन को स्वतंत्र छोड़ देते हैं, तो यह हमारे लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
धन एक जड़ पदार्थ होता है और वह सुख देने में सक्षम नहीं होता है। जो व्यक्ति परम सुख की इच्छा रखता है, उसे धन की भीख में शामिल नहीं होना चाहिए। यदि मन धन की ओर दौड़ता है, तो धन हमें सभी तरह के दुःख ही दिखाएगा। यह दुःख कमाने में, रख-रखाव में और खर्च करने में होगा। हालांकि, एक गृहस्थ के लिए धन कमाना आवश्यक होता है, परंतु धन के प्रति अत्यधिक आशक्ति उचित नहीं है। धन को योग्य रूप से अर्जित करना चाहिए और उसे धर्मानुसार उपयोग करना चाहिए।
चाहतें हमेशा दुःख का कारण बनती हैं। बचपन से ही हम चाहतों के चक्र में फंसे रहते हैं, जो हमें दुखी बनाती हैं। जब हम जन्म लेते हैं, तो हम रोते हैं। अगर हम रोने वाले कोई वस्तु नहीं होती, तो सभी परेशान हो जाते हैं। जीवन रोने से ही शुरू होता है और जीवन भर हम चाहतों के पीछे रोते रहते हैं। रोना ही हमारी जीवन शैली बन जाता है।
चाहतें एक अधीर तृष्णा हैं जो कभी भी पूरी नहीं होती, और इसलिए जीवन भर हमेशा असंतुष्ट रहते हैं। वासनाएं और कामनाएं कभी भी शांत नहीं होती, बल्कि यह शरीर के नष्ट हो जाने पर भी समाप्त हो जाती हैं। हमें अपनी चाहतों को नियंत्रित करना चाहिए, अन्यथा शांति प्राप्त करना कठिन होगा। चाहतों को संवारने से ही हम शांति प्राप्त कर सकते हैं।
मानवीय जीवन में समृद्धि और सुख प्राप्त करने के लिए अपनी चाहतों और आशक्तियों को समझना और नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। इसे अपनी आध्यात्मिक उन्नति के माध्यम से कर सकते हैं जहां हम मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करते हैं। अपने मन को परमात्मा या अध्यात्म के साथ जोड़कर हम अपनी चाहतों और आशक्तियों से मुक्त हो सकते हैं। यह हमें वास्तविक सुख और शांति की प्राप्ति में सहायता करेगा।
धन का प्राप्ति केवल अर्थिक आदान-प्रदान के माध्यम से होना चाहिए, और उसे धर्म के मार्ग पर उपयोग करना चाहिए। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में अर्थ का महत्वपूर्ण स्थान है, और बिना अर्थ के, न काम पूरा हो सकता है और न ही धर्म और मोक्ष में प्रगति हो सकती है।
सम्पूर्ण जीवन के लिए संतोष, संतुष्टि, साधना और समय निकालने की योजना बनाना आवश्यक है। यह समझना होगा कि सच्चा सुख और शांति आंतरिक अनुभव में ही मिलेंगे, और अवैच्छिकता और चाहतों के पीछे दौड़ने से नहीं। हमें धन को साधन के रूप में उपयोग करना चाहिए, लेकिन हमेशा ध्यान देना चाहिए कि धन हमारे अंतरंग सुख और शांति का स्रोत नहीं हो सकता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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