Published By:धर्म पुराण डेस्क

कुंडेश्वर में भगवान शिव का प्राचीन मंदिर होने के कारण यहां के मेलों में टीकमगढ़ जिले से ही नहीं आसपास के जिलों ललितपुर, झांसी, छतरपुर सागर एवं दमोह से भी लोग आते हैं।
बड़े बाबा का मेला दमोह से करीब 35 किलोमीटर दूर जैन धर्मावलंबियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है कुण्डलपुर। यह स्थल कुंडलपुर पर्वत श्रेणियों से घिरा है। शायद इसलिए इसका नाम कुण्डलपुर पड़ा।
वर्धमान सागर नामक एक विशाल सरोवर ने इस स्थान की गरिमा को और बढ़ा दिया है। यहाँ 60 मंदिर हैं। इनमें में से 40 पर्वत श्रेणियों पर और 20 अधिपत्थर पर स्थित है। कुण्डलपुर में मुख्य मंदिर बड़े बाबा का है, जो यहां आस्था और श्रद्धा के साथ आकर्षण का केन्द्र है, करीब 12 फुट 6 इंच और 11 फुट चौड़े बड़े बाबा की भव्य प्रतिमा प्रथम तीर्थंकर युगदिदेव ऋषभनाथ की है।
प्रतिमा के पाद पीठ के प्रथम तीर्थंकर यक्ष, यक्षी गोमु और चक्रेश्वरी के स्पष्ट मूल्यांकन हैं। यह क्षेत्र करीब पच्चीस सौ वर्ष पुराना है। पिछले दिनों बड़े बाबा की मूर्ति को नये मंदिर में स्थापित कर दिया गया है।
बड़े बाबा का मेला प्रतिवर्ष माघ शुक्ल पर कुंडलपुर में आयोजित किया जाता है। इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा के दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं।
मेले के समापन पर पाण्डुक शिला वाले स्थान तक भव्य शोभायात्रा निकलती है। इसके अतिरिक्त यहां प्रतिवर्ष निर्वाण महोत्सव (चैत्र कृष्ण अमावस्या) और महावीर जयंती (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी) पर भी मेले भरते हैं।
इन तीनों मेलों के अवसर पर भगवान महावीर का महामस्तकाभिषेक होता है। इस मेले के साथ एक ऐतिहासिक घटना जुड़ी है।
कहा जाता है कि विक्रम संवत 1775 में महाराजा छत्रसाल द्वारा मुगल सम्राट औरंगजेब के युद्ध में अपना राज्य वापस जीत लेने की खुशी में यहां मेला भरना शुरू हुआ। मान्यता है कि छत्रसाल ने अपने विपत्ति के समय बड़े बाबा के चरणों में आश्रय लिया।
जब उनकी विपत्ति दूर हुई तो उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और वर्धमान सागर तालाब के घाट का निर्माण कराया था। उस समय इस उपलक्ष्य में बड़ा उत्सव मनाया गया। उसी से यहां माघ सुरी में यहां विशाल मेला भरने लगा था।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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