मकर संक्रांति पर जिला मुख्यालय छतरपुर से करीब सोलह किलोमीटर दूर मऊसहानिया ग्राम के पास जगत सागर तालाब पर प्रमुख मेला आयोजित होता है। इसकी प्रसिद्धि पूरे इलाके में है। पांच दिन तक चलने वाले इस मेले में हजारों की संख्या में ग्रामीण यहां पहुंचते हैं।
जगत सागर मेला काफी पुराना है और दिनों दिन इसका स्वरूप भी बदला है। मकर संक्रांति पर ही छतरपुर जिले के महाराजपुर के निकट कुम्हेर नदी पर एक सप्ताह तक कुम्हेर मेला लगता है।
छतरपुर जिले के चरण पादुका में भी मकर संक्रांति के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है। मकर संक्रांति के इस मेले को लोग शहीद मेला भी कहते हैं।
दरअसल चरण पादुका का स्वतंत्रता संग्राम में एक अद्भुत व अनुपम स्थान है। 14 जनवरी, 1933 को यहां मकर संक्रांति के रोज जब उर्मिल नदी के तट पर मेला भरा था, तब यहां आयोजित स्वतंत्रता सेनानियों की एक सभा पर अंग्रेजों ने गोलियां बरसा दीं जिसमें कई लोग शहीद हो गए थे और कई घायल हो गए थे।
तब से इस स्थान पर मकर संक्रांति को शहीदों की याद में यह मेला प्रसिद्ध हुआ। चरण पादुका को लेकर एक मान्यता यह भी है कि उर्मिल नदी के किनारे एक बड़ी शिला पर पैरों के चिन्ह अंकित है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान राम वनवास के समय इस स्थान पर आए थे और यह चरण चिन्ह उन्हीं के हैं। इसलिए इसे चरण पादुका भी कहा जाने लगा।
छतरपुर जिले के जटाशंकर तीर्थ स्थल पर हर अमावस्या को मेला भरता है। यहां पहाड़ पर स्थित शिव मंदिर जटाशंकर के नाम से मशहूर है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को शिवलिंग का पहाड़ी से प्राकृतिक रूप से आ रहा झरना अभिषेक-सा करता प्रतीत होता है।
मंदिर के सामने ही एक बड़ा कुंड भी है। जिसमें झरने का पानी एकत्रित होता है। यहां पर सबसे बड़ा मेला मकर संक्रांति पर ही भरता है। यह मेला तीन दिन तक चलता है। इस दिन श्रद्धालु यहां आकर पवित्र कुंड में स्नान कर शिव मंदिर में पूजा करते हैं।
जटाशंकर के बारे में कहा जाता है कि यहां सत्तर के दशक के कुख्यात डाकू मूरत सिंह ने यज्ञ कराकर मंदिर बनवाया था। यह मंदिर जटाशंकर के मंदिर की ऊपरी तरफ स्थित है।
छतरपुर जिले में अबार माता मेला सबसे बड़ा मेला आयोजित होता है। यह एक माह तक चलता है, मई माह में भरने वाले इस मेले में सागर, छतरपुर और ललितपुर जिले के लाखों ग्रामीण पहुंचते हैं और देवी के दर्शन कर मेले का आनन्द उठाते हैं।
जून माह में लौड़ी तहसील के बदौन ग्राम में काली देवी का मेला लगता है जो तीन दिनों तक चलता है।
छतरपुर में ही अक्टूबर-नवम्बर माह में दशहरा और दीपावली के बीच पन्द्रह दिन का जलविहार मेला लगता है। यह मेला शासकीय खर्च पर आयोजित होता है, जिसमें शासकीय प्रदर्शनी तो लगती है, साथ ही दर्शकों को लुभाने इस मेले में कई व्यवसायी मनोरंजन के साधन लेकर पहुंचते हैं।
जलविहार का ही एक मेला नवम्बर माह में हरपालपुर में लगता है। यह मेला सात दिनों तक चलता है। इसी माह में बिजावर तहसील में नागौर गांव के पास कदम का मेला और गढ़वा गांव में पांच दिवसीय मेले लगते हैं।
बिजावर का जानकी मेला क्षेत्र का काफी प्राचीन मेला है। पूर्व में इस मेले में बिजावर नरेश द्वारा राम जानकी विवाह का आयोजन किया जाता था, अब इसका स्वरूप बदल गया है।
राम जानकी विवाह उत्सव तो नहीं होता, लेकिन मेला आज भी उसी स्वरूप में भरता है। इस मेले में दूर-दूर से दुकानदार, सर्कस, बाजीगर और खोमचे वाले आते हैं। मेला एक पखवाड़े तक चलता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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