इनमें कुछ तो चैत्य अर्थात् पूजागृह हैं और कुछ विहार अर्थात् बौद्ध भिक्षुओं के रहने का स्थान | ये गुफाएँ भी आन्ध्र वंशी राजाओं की बनवायी हुई हैं और इनमें कई विस्तृत लेख भी विद्यमान हैं। विद्वानों का ख्याल है कि ये गुफाएँ ईसासे एक या दो सौ वर्ष पूर्व से लेकर ईसाके बाद की दूसरी शताब्दी की बनी हुई हैं। इनमें तीन बड़े-बड़े विहार और एक चैत्य विशेष रूप से दर्शनीय हैं। इन गुफाओं में जो मूर्तिकारी मिलती है, उसको देखने से आन्ध्र राजाओं के समय का वेश-भूषा, उन राजाओं की श्रद्धा तथा उनके विजय किये हुए देशों के नाम मिलते हैं। शातकर्णी राजाओं तथा पुलवामा राजा इत्यादि का वर्णन तथा लेख विशेष रूप से द्रष्टव्य हैं। ये गुफाएँ हीनयान नामक बौद्ध सम्प्रदायके साधुओंके लिये बनी थीं और इनमें बुद्धकी कोई मूर्ति नहीं मिलती। बुद्धके स्मारकरूपमें उनकी पगड़ी इत्यादि ही मिलती है। पीछेकी अर्थात् महायान मतकी गुफाओंमें अनेकानेक मूर्तियाँ बनी हुई मिलेंगी।
ऊपर लिखे हुए मळवली स्टेशन के प्रायः आधा मील पश्चिम सुप्रसिद्ध 'भाजा की गुफाएँ' पर्वत पर नीचे सड़क से कुछ ही ऊपर बनी हैं। भाजा की गुफाएँ भी ईसासे दो-तीन सौ वर्ष पूर्व बनी हुई मानी जाती हैं। यहां पर अठारह गुफाएँ हैं, जिनमें बीच का चैत्य बहुत ही प्राचीन तथा कई बातों में द्रष्टव्य है। इस चित्र में अब भी प्राचीन समय की काठ की शहतीरें लगी हुई मिलती हैं। सम्भव है कि इनके प्रायः ढाई हजार वर्षतक विद्यमान रहने के कारण यह हो कि सैकड़ों वर्ष तक ये गुफाएँ मिट्टी के अंदर दबी थीं। इस स्थान पर एक बहुत ही प्रसिद्ध विहार भी है, जिसमें मूर्तिकारी बहुत ही विचित्र है। इसमें भीतर की ओर एक मनुष्य बना है, जो हाथ में पहुँची पहने हुए तथा विचित्र तरह से भाले लिये हुए है। बिहार के बाहर बरामदे में और भी विचित्र चित्रकारी है। एक मूर्ति में एक पुरुष हाथी पर बैठा दिखाया गया है, जिसके बारेमें कुछ लोगोंका मत है कि यह इन्द्र की प्रतिमा है। दूसरी प्रतिमा में एक पुरुष बड़ी पगड़ी बाँधे एक रथपर जा रहा है, जिसके नीचे बड़े-बड़े दैत्य आ गये हैं। कुछ लोगोंका कहना है कि यह मूर्ति सूर्यकी है। इनके अतिरिक्त यहाँपर कई और मूर्तियाँ भी मिली हैं, जिनके विषयमें विद्वानोंका अभीतक कोई निश्चित मत नहीं स्थापित हुआ है। ऐसी मूर्तिकारी इस देशमें केवल यहीं मिलती है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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