ओसियां (जोधपुर) में सूर्य मंदिरों की संख्या 12 है। 'गिरनार' और शत्रुंजय (पालीताणा) के देवनगर (अर्थात् जहाँ मन्दिरों के ही नगर बसे हैं, जिसमें आदमी रात को नहीं टिक पाता) इसी शैली के उदाहरण हैं ।
इस मंडल के सोमनाथ-मन्दिर को भारतीय इतिहास में जो महिमा और गरिमा प्राप्त है, वह पश्चिमी भारत के अन्य किसी भी मंदिर को नहीं प्राप्त है। इसकी गणना राष्ट्र के उन बारह ज्योतिर्लिंगों में होती है, जो सिन्ध से आसाम तक और हिमालय से कन्याकुमारी तक फैले हुए हैं।
यह मंदिर आज भी अपने उन्नत एवं प्रशस्त आकार समेत काठियावाड़ के दक्षिणी समुद्री किनारे पर स्थित है और सोमेश्वर शिव का प्राचीनतम स्थान है।
जान पड़ता है कि भीमदेव प्रथम (1022- 1072) ने ही प्राचीन मन्दिर का जीर्णोद्धार किया था, क्योंकि उसके शासन-काल के पहले ही महमूद तथा उसके सिपहसालार ने मन्दिर को ध्वस्त कर दिया था।
ज्ञात होता है कि मंदिर में एक दीर्घाकार मंडप (गूढ़ मंडप) था, जिसमें तीन द्वार थे। शिवलिंग इसी मंडप के पश्चिमी भाग में स्थापित था।
लिंग के चारों ओर काफी चौड़ा प्रदक्षिणा पथ भी बना था । मंदिर की रक्षा करने वाले तथा अन्य धर्म-प्रसंग पुराणों की सभा के लिये एक 'सभामंडप' भी था।
मन्दिर के बाहरी भाग पर जो संगतराशी विद्यमान थी, वह अब बहुत कुछ नष्ट हो चुकी है। आक्रमणकारियों ने उसके प्रति घोर अन्याय किया है, यहाँ तक कि दीवारों पर बनी हुई कुछ मूर्तियों को पहचाना ही नहीं जा सकता। दीवारों पर रामायण के कुछ प्रसिद्ध कथा-दृश्य भी प्रदर्शित किये गये हैं।
कहा जाता है कि सोमनाथ मन्दिर के चन्दन की लकड़ी के बने थे और महमूद गजनवी उन्हें अपने साथ गजनी ले गया। दरवाजे काठियावाड़ के मध्यकालीन मंदिरों में घुमली (बारदा-पहाड़ियाँ) का नवलखा मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है।
यह सोमनाथ के मन्दिर से पहले का है; किंतु वास्तु पद्धति लगभग एक-सी है। इसे देखकर सोमनाथ मन्दिर की सजीव मूर्ति का अनुमान किया जा सकता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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