Published By:धर्म पुराण डेस्क

पर्वों का पुंज : दीपावली

उत्तरायण, शिवरात्रि, होली, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, नवरात्रि, दशहरा आदि त्यौहारों को मनाते-मनाते आ जाती है पर्वों की हारमाला- दीपावली। 

पर्वों के इस पुंज में ये 5 दिन मुख्य हैं : धनतेरस, काली चौदस, दीपावली, नूतन वर्ष और भाईदूज | धनतेरस से लेकर भाईदूज तक के ये 5 दिन आनंद और उत्सव मनाने के दिन हैं।

शरीर को रगड़-रगड़कर स्नान करना, नये वस्त्र पहनना, मिठाइयां खाना, नूतन वर्ष का अभिनंदन देना-लेना, भाइयों के लिए बहनों में प्रेम और बहनों के प्रति भाइयों द्वारा अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करना - ऐसे मनाये जाने वाले 5 दिनों के उत्सवों का नाम है 'दीपावली पर्व'।

धनतेरस : धन्वंतरि महाराज खारे-खारे सागर में से औषधि रूप अमृत लेकर प्रकट हुए थे। आपका जीवन भी औषधियों के द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य-संपदा से समृद्ध हो सके, ऐसी स्मृति देता हुआ जो पर्व है, वही है ‘धनतेरस'। यह पर्व धन्वंतरि द्वारा प्रणीत आरोग्यता के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाकर सदैव स्वस्थ और प्रसन्न रहने का संकेत देता है।

काली चौदस : धनतेरस के पश्चात् आती है 'नरक चतुर्दशी (काली चौदस )'। भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर को क्रूर कर्म करने से रोका। उन्होंने 16 हजार कन्याओं को उस दुष्ट की कैद से छुड़ाकर अपनी शरण दी और नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया। नरकासुर प्रतीक है - वासनाओं के समूह और अहंकार का। 

जैसे, श्रीकृष्ण ने उन कन्याओं को अपनी शरण देकर नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया, वैसे ही आप भी अपने चित्त में विद्यमान नरकासुर रूपी अहंकार और वासनाओं के समूह को श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दो, ताकि आपका अहं यमपुरी पहुँच जाये और आपकी असंख्य वृत्तियाँ श्रीकृष्ण के अधीन हो जायें। ऐसा स्मरण कराता हुआ पर्व है नरक चतुर्दशी। 

आपकी असंख्य कन्याएँ (वृत्तियाँ) आत्म कृष्ण के आनंद में मुक्तता, सतता, चेतनता, आनन्दता, शाश्वतता का अनुभव करें। जीवन में चाहे जितना अंधकार दिखता हो, चाहे जितना नरकासुर अर्थात् वासना और अहं का प्रभाव दिखता हो, आप अपने आत्म कृष्ण को पुकारना। श्रीकृष्ण रुक्मिणी को आगेवानी देकर अर्थात् अपनी ब्रह्मविद्या को आगे करके नरकासुर को ठिकाने लगा देंगे।

स्त्रियों में भी कितनी शक्ति है ! नरकासुर के साथ केवल श्रीकृष्ण लड़े हों, ऐसी बात नहीं है। श्रीकृष्ण के साथ रुक्मिणी जी भी थीं। सोलह-सोलह हजार कन्याओं को वश में करने वाले श्रीकृष्ण को रुक्मिणी जी सच्चाई और सज्जनता से वश कर लेती हैं। सच्चाई, सज्जनता व संयम में कितनी शक्ति है। 

दीपावली की रात्रि को सरस्वती जी और लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है। ज्ञानीजन केवल अखुट धन की प्राप्ति को लक्ष्मी नहीं, वित्त मानते हैं। वित्त से आपको बड़े-बड़े मकान मिल सकते हैं, शानदार महंगी गाड़ियां मिल सकती हैं, आपकी लंबी-चौड़ी प्रशंसा हो सकती है परंतु आपके अंदर परमात्मा का रस नहीं आ सकता। इसलिए दीपावली की रात्रि को सरस्वती जी का भी पूजन किया जाता है, जिससे लक्ष्मी के साथ-साथ आपको विद्या भी मिले। 

वह विद्या भी केवल पेट भरने की विद्या नहीं वरन् वह विद्या जिससे आपके जीवन में मुक्ति के पुष्प महकें। सा विद्या या विमुक्तये। ऐहिक विद्या के साथ-साथ ऐसी मुक्ति प्रदायक विद्या, ब्रह्मविद्या आपके जीवन में आये, इसके लिए सरस्वती जी का पूजन किया जाता है।

आपका वित्त आपको बांधने वाला न हो, आपका धन आपकी आयकर भरने की चिंता को न बढ़ाये, आपका वित्त आपको विषय-विकारों में न गिरा दे, इसलिए दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है। लक्ष्मी आपके जीवन में महालक्ष्मी होकर आये।

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