Published By:अतुल विनोद

पहले ये तो तय करें कि हम चाहते क्या हैं?...अतुल विनोद

"पहले ये तो तय करो कि तुम चाहते क्या हो?" UG कृष्ण मूर्ति के इस सवाल ने उनसे मिलने पहुचे एक शख्स को हिला दिया.. ये सवाल हमे भी हिला सकता है|  हमारे हालात विचित्र होते हैं| हम भगवान से कुछ न कुछ मांगते रहते हैं| हमारी शिकायतें भी कम नहीं| इसलिए भगवान भी यही पूछता है आखिर तुम चाहते क्या हो? 

लाइफ बहुत अटपटी होती है| माँ के पेट सा सुकून, बाहर आकर नहीं मिलता, बचपन सा सुकून टीन ऐज में नही होता| लडकपन सी शांति युवावस्था में नहीं मिलती| तरुणाई सा अल्हडपन प्रौढ़अवस्था में नही मिलता| उम्र बढ़ते हुए पहले का जीवन अच्छा लगता है वर्तमान बोझिल | 

हर वक्त ईश्वर से मांग और शिकायत होती रहती है|  अजीब बात ये है कि एक साल पहले जिस बात, घटना या क्षण ने अत्यधिक दुःख या सुख पहुचाया था जिसे लेकर दिन रात सोचते रहते थे आज वो हमे याद भी नही है|  आज जो प्रायोरिटी है कल वो लास्ट में पहुँच सकती है| जिस पोस्ट पर पहुचना जिंदगी का मकसद था वो मिलते ही काटने को दौड़ सकता है|  

पहले उस पोस्ट को पाने की मन्नत फिर कुर्सी बचाने का जतन फिर फस गये तो ??? ईश्वर ये सब जानता है इसलिए वो पूछता है आखिर तुम चाहते क्या हो?  क्यूंकि कल तुम कुछ और मांगते थे आज कुछ और कल कुछ और ही मांगोगे?  तो तय कर लो … तुम्हारी जीवन की सबसे बड़ी और मुख्य तलाश क्या है जो वक्त के साथ नहीं बदलती| आज किसी बात से दुखी हो तो सोचो कि क्या कल भी उससे उतना ही दुखी रहोगे| 

स्टीफन-आर-कवि ने इसके लिए एक फार्मूला दिया अंत को ध्यान में रखो| सोचो की पांच साल बाद उस मामले में हमारी फिलिंग क्या होगी जिस पर आज बबल खड़ा हुआ है| 

 

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