आयुर्वेद का प्रथम स्तम्भ आहार
प्रथम स्तभ: आहार..
कुछ विशेष करना चाहिए। कोष्णम् हमेशा भोजन ताजा ही - कुछ गर्म भोजन करना चाहिए । नाति उष्णम्-नाति शीतम् - न ज्यादा गर्म तथा न अधिक शीतल। भोजन करते समय पूरा ध्यान भोजन पर ही लगाना चाहिए। अतः कहा गया तन्मना भुंजीत इधर उधर ध्यान बंटने से भोजन का पूरा स्वाद नहीं आता।
भोजन के समय- अल्पम् मौन रहकर भोजन करना चाहिए। अहसन - भोजन करते समय हंसना नहीं चाहिए। उससे कभी कभी आहार का विभार्गमन हो सकता है। श्वास नली में जा सकता है।
इसी तरह यातयामं, गतरसं, पूति, पर्युषितं च यत् भोजनं तामसय अर्थात् जो - भोजन तीन घंटे पहले का बना हुआ हो ऐसा भोजन हितकर नहीं है, वह भारी बन जाएगा। बदबूदार, वासी भोजन, तामसिक भोजन कहलाता है। प्रायः हम इन बातों का ध्यान नहीं रखते। इसी तरह - कट्वम्ल लवणात्युष्ण तीक्ष्णरूक्षविदाहिनः दुःखशोकामयप्रदाः । आहारा राजसाः अर्थात् तीखे, खट्टे, खारे (अति नमक वाले), बहुत गर्म, चटपटे, रूक्षे, वातकारक आलस राजस कहलाते हैं। राजसी लोगों को प्रिय होते हैं तथा दुःख, शोक तथा बीमारियों को देने वाले होते हैं।
अतः ऐसे आहारों से बचना चाहिए। फिर सात्विक आहार - आयुः सत्वबलारोग्य सुखप्रीति विवर्धनः । रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आलाराः सात्विक प्रिया अर्थात् आयु को बढ़ाने, सात्विक बल, आरोग्य, सुख और रुचि बढ़ाने वाले रसदार, चिकने, पौष्टिक और मन को रुचिकर आहार सात्विक आहार कहलाते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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