Published By:धर्म पुराण डेस्क

मत्स्य भगवान और जल प्रलय

भगवान मत्स्य

श्रुतियाँ सहज अलस भाव से उनके मुख से निकलीं। उन श्रुति स्वरूप के मुख से निंद्रा में और प्रकट भी क्या होता। दिति पुत्र हयग्रीव ने उन्हें स्मरण कर लिया। एक असुर श्रुतिका न शुद्ध च्चारण कर सकता और न उसका अर्थ-दर्शन। वह अपनी मलिन बुद्धि से श्रुतियों का अनर्थ करेगा। श्रुतियों के उद्धार के लिये, उनकी परम्परा शुद्ध रखने के लिये भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण किया।

भुवन-भास्कर विवस्वान् के पुत्र राजर्षि सत्यव्रत जल पीकर घोर तप में लीन थे। प्रातः स्नान करके कृतमाला नदी में तर्पण के लिये उन्होंने अंजलि उठायी। हिलसा जातिकी स्वर्णवर्णं एक शफरी (छोटी मछली) उसमें आ गयी थी। राजर्षि ने अंजलि विसर्जित कर दी।

'यहाँ हम छोटी मछलियों का आहार बना लेनेवाले बहुत जन्तु हैं। उनसे डरकर मैं आपकी शरण आयी हूँ।' शफरी भागी नहीं। वह बोल रही थी। राजर्षि ने उसे उठाकर कमंडल के जल में रख लिया।

'मैं आपकी शरण हूँ। मेरी सुविधा का आपको प्रबंध करना चाहिये। यहाँ तो मैं हिल भी नहीं सकती।' आश्रम में पहुंचे थे मछली ने पुनः प्रार्थना की। वह इतनी बढ़ गयी थी कि कमण्डलु में उसका हिलना कठिन था। क्रमशः उसे बड़े चित्र, कुंड, सरोवर और सरिता में रखना पड़ा। सब कहीं कुछ मुहूर्त में वह स्थान उसकी वृद्धि से पूर्ण हो जाता था। अंत में समुद्र में छोड़ना पड़ा उसे।

'निश्चय ही आप सर्वेश हैं। जब आपने मुझपर कृपा की है, तब अपने इस शरीर धारण का प्रयोजन बताएं।' राजर्षि ने तब प्रार्थना की, जब समुद्र में मत्स्य ने अपने लिये मगर आज का भाव बताया। भला कोई जलजीव इतनी शीघ्र यह आकार वृद्धि कहां पा सकता था। भगवान मत्स्य ने बताया कि प्रलय सातवें दिन ही होनी है। भगवान के आदेशानुसार राजर्षि ने बहुत बड़ी नौका बनवाया। उसमें सम्पूर्ण वनस्पतियों के बीज और

प्राणियोंके जोड़े सुरक्षित किये। सातवें दिन चारों ओरसे बढ़कर समुद्रने पृथ्वीको प्लावित कर दिया। नौकामें इसी समय सप्तर्षि भी आकर बैठ गये। प्रबल पवनसे नौका चंचल हो उठी। उसी समय एक श्रृंगधारी अयुत योजन विशाल स्वर्णोज्वल भगवान् मत्स्य प्रलय सागरमें प्रकट हुए। नागराज वासुकी पहलेसे नौकामें विराजमान थे। नौका उन महासर्पकी रज्जुसे मत्स्यके सींगमें बाँध दी गयी।

भूः - भुवः आदि सम्पूर्ण लोक जलमग्न हो गये थे। अंधकार में सागर की उत्तुंग तरंगों के बीच महामत्स्य प्रभु विचरण कर रहे थे। नौका में ऋषियों का तेज प्रकाश किये था। राजर्षि ने प्रश्न किया और भगवान ने उत्तर दिया। भगवान मत्स्य का वह दिव्य उपदेश भगवान व्यास ने मत्स्यपुराण में संकलित किया है। प्रलयकाल व्यतीत हुआ। समुद्र उतरा। भगवान के आदेश हिमालय के एक शृंग में राजर्षि सत्यव्रत ने अपनी नौका बाँध दी ! वह श्रृंग अब भी नौका बंधन शृंग कहा जाता है। राजर्षि सत्यव्रत इस मन्वन्तर के वैवस्वत मनु है। भगवान मत्स्य हयग्रीव का वध किया; क्योंकि सृष्टि काल में असुरके समीप श्रुति रहना अभीष्ट नहीं था।

यहूदियों का धर्मग्रन्थ में, बाइबल में और कुरान में भी मनु की इस जल प्रलय और नौकर रोहण का प्रकारान्तर से वर्णन है। चीन में तथा प्राचीन आस्ट्रेलिया एवं अमेरिका निवासियों में भी यह चरित प्रसिद्ध है। बहुत थोड़ा अंतर कथा में इन स्थानों में हुआ है। कल का सब कहां मिला बताया है कि सब जातियाँ भारत से गई है और मनु की संतान हैं। देश, काल के प्रभाव से कथा में परिवर्तन स्वाभाविक है। भगवान मत्स्य विश्व-संस्कृति को ही इस प्रकार रक्षक एवं प्रतिष्ठा पर हैं।

प्रलयपयसि धातुः सुप्तशक्तेर्मुखेभ्यः दितिजमकथयद् यो ब्रह्म सत्यव्रतानां तमहमखिलहेतुं जिह्यमीनं नतोऽस्मि ॥

श्रुति गण मपनी प्रत्युपादत्त हत्वा

 

धर्म जगत

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