Published By:दिनेश मालवीय

“रामचरितमानस” में पाँच गीताएँ -----दिनेश मालवीय

“रामचरितमानस” में पाँच गीताएँ -----दिनेश मालवीय

भारत में “गीता” का बहुत महत्व है. जब गीता की बात होती है, तो आमतौर पर “श्रीमद् भागवत गीता” का नाम ही ज्यादातर लोगों के दिमाग में आता है. निश्चय ही यह भारत के धर्म-साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत में और भी गीता ग्रंथ हैं, जिनमें गणेश गीता, राम गीता, अष्टावक्र गीता आदि शामिल हैं.

सनातन के कुछ अध्येता संतों के अनुसार, “गीता” उस संवाद को कहा जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा किसी आध्यात्मिक संशय या जिज्ञासा किये जाने पर कोई उसका उपदेश के द्वारा निवारण किया जाता है.

“रामचरितमानस” में इस प्रकार के पांच संवाद हैं, जिन्हें संतों ने गीता माना है. इनके माध्यम से जिज्ञासुओं  के प्रश्नों या जिज्ञासाओं का निवारण किया गया है. इनमें अयोध्याकाण्ड में लक्ष्मण-निषाद संवाद, अरण्यकाण्ड में राम-लक्ष्मण संवाद, लंका कांड में विभीषण-राम संवाद और उत्तरकाण्ड में दो संवाद शामिल हैं. ये दो संवाद हैं- भगवान् राम का अयोध्या के नागरिकों से संवाद और कागभुशुंडी का गरुड़ के साथ संवाद.

लक्ष्मण-निषाद संवाद:-

अयोध्याकाण्ड में जब रात को भगवान सो जाते हैं, तब लक्ष्मण कुछ दूर जाकर वीरासन लगाकर उनकी सुरक्षा के लिए बैठ जाते हैं. भगवान और सीता को घास-फूस के बिछौने पर सोते देखकर निषाद को बहुत विषाद होता है. वह इस बात पर दुःख व्यक्त करता है कि जिन राम के राजमहल में संसार की सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध हैं, वे आज इस तरह कठिन जीवन बिता रहे हैं. इस पर लक्ष्मण निषाद को समझाते हुए कहते हैं कि संसार को कोई किसी को सुख-दुःख नहीं देता. हर संसार में हर कोई अपने कर्मों को ही भोगता है. संयोग, वियोग, भोग, बुरा, भला भोग, मित्र, शत्रु, मध्यस्थ आदि सभी भ्रम के फंदे हैं.

लक्ष्मण कहते हैं कि जन्म-मरण, जहाँ तक संसार का फैलाव है, वह सब छलावा ही है. संपत्ति, घर, नगर, कुटुंब, स्वर्ग और नरक सहित जहाँ तक व्यवहार देखने-सुनने और विचार में आता है, इस सभी का मूल मोह है, परमार्थ नहीं. जिस प्रकार सपने में कोई भिखारी राजा हो जाता है और कोई राजा भिखारी, लेकिन जागने पर उसे असलियत का पता चलता है. इसी प्रकार मोह रूपी रात में सभी लोग जीवन के घटनाक्रम को सही मानते रहते हैं. ज्ञान होने पर सच का पता चलता है. यह जीवन सामान्य मनुष्यों के लिए रात की तरह होते है, जिसमें सब सपने देख रहे होते है. लेकिन ज्ञानी और योगी इस रात में जाग्रत रहते हैं.

राम-लक्ष्मण संवाद:-

अरण्यकाण्ड में एक बार भगवान राम से लक्ष्मण ने ज्ञान, वैराग्य और माया का वर्णन करने को कहा. साथ ही भक्ति का निरूपण कीजिये. ईश्वर और जीव में भेद भी बताइए. राम ने कहा कि मैं और मेरे, तू और तेरा, यही माया है. इसीने सभी जीवों को वश में कर रखा है. इन्द्रियों के विषयों और जहाँ तक मन जाता है, उस सबको माया जानना चाहिए. राम ने विद्या और अविद्या का भेद भी बताया. अविद्या दुःख रूप और विद्या सुख रूप है. ज्ञान में अभिमान, दंभ आदि दोष नहीं होते. ज्ञानी हर व्यक्ति और वस्तु में ब्रह्म की उपस्थिति देखता है. जो माया, ईश्वर और अपने स्वरूप को नहीं जानता, उसे जीव कहते हैं. भक्ति स्वतंत्र है, उसको ज्ञान-विज्ञान आदि किसी दूसरे साधन के सहारे ही अपेक्षा नहीं होती. ज्ञान और विज्ञान उसके अधीन हैं. यह संत की अनुकूलता से ही प्राप्त होती है. भक्ति प्राप्त होने पर विषयों से वैराग्य हो जाता है.

राम-विभीषण संवाद:-

जब राम और रावण का युद्ध शुरू होता है, तो विभीषण राम से कहता है कि आपके पास न रथ है, न शरीर की रक्षा के लिए कवच है और न पांव में जूते हैं. आप बलवान और रथ पर सवार रावण को कैसे जीत पाएंगे.

भगवान राम कहते हैं कि मेरे पास एक रथ है, जिससे विजय प्राप्त होती है. शौर्य और धीर उस रथ के पहिये हैं. सत्य और सदाचार उसकी मजबूत ध्वजा और पताका है. बल, विवेक, इन्द्रिय नियंत्रण तथा परोपकार उसके चार घोड़े हैं, जो  क्षमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ को जोते हुए हैं. ईश्वर का भजन इस रथ के सारथी हैं. वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है. दान फरसा है, बुद्धि प्रचंड शक्ति है. श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है. निर्मल और स्थिर मन तरकश है. मन पर नियंत्रण आदि बाण हैं. गुरुओं का पूजन अभेद्य कवच है. इसके सिवा विजय का दूसरा उपाय नहीं है. ऐसा धर्ममय रथ जिसके पास हो उसके लिए जीतने को कहीं कोई शत्रु है ही नहीं.

राम-पुरवासी संवाद:-

लंका विजय कर अपने वनवास की अवधि पूरी कर राम अयोध्या के राजा बने. एक बार उन्होंने सभी नगरवासियों को बुलाकर उपदेश दिया. इसमें भगवान के लोकतांत्रिक स्वरूप का पता चलता है. भगवान ने कहा कि मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ, यदि आपको अच्छी लगे तो उसके अनुसार आचरण करिए. मेरा सेवक प्रिय वही है, जो मेरी आज्ञा माने. यदि मेरी बात में कुछ गलत लगे तो मुझे बेखटके रोक देना.

राम ने कहा कि मनुष्य का शरीर बहुत भाग्य से मिलता है. यह देवताओं को भी दुर्लभ है. यह साधना का माध्यम और मोक्ष का दरवाजा है. इसे पाकर जो व्यक्ति अपना परलोक नहीं सुधारता, वह सिर धुन-धुन कर पछताता है. अपना दोष नहीं देखता और अपने दुखों के लिए काल, कर्म और ईश्वर पर झूठे दोष लगाता है. मानव तन का फल विषय भोग नहीं, बल्कि ईश्वर भक्ति है. वह पारसमणि को खोकर उसके बदले में घुँघची ले लेता है.इसी तरह चार ख़ानों और चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता रहता है.

इस प्रकार राम अयोध्या वासियों को भक्ति कर जीवन को सफल बनाने का उपदेश देते हैं.

गरुड़-कागभुशुंडी संवाद:-

राम-रावण युद्ध में जब भगवान राम नागपाश से बंध जाते हैं, तब गरुड़ उन्हें उससे मुक्त करते हैं. इससे गरुड़ को अभिमान और यह संशय हो गया कि यदि यज भगवान् हैं तो बंधन में कैसे बंधे. वह इस बात को नहीं समझ पाता कि राम नर लीला और युद्ध की मर्यादा का पालन कर रहे हैं. वह शिवजी के सामने यह संशय प्रकट करता है. शिवजी उसे मोह निवारण के लिए कागभुसुंडि के पास भेजते हैं, क्योंकि पक्षी की बोली पक्षी ही समझता है.

कागभुशुंडी गरुड़ को सम्पुर्ण रामकथा सुनाई और राम के ईश्वरत्व के विषय में उनका मोह दूर किया. गरुड़ को अपनी गलती का अहसास हुआ, कि उसने राम को साधारण मनुष्य समझ लिया था. कागभुशुण्डी ने बताया कि ऐसा कौन ज्ञानी,तपस्वी, शूरवीर, कवि, विद्वान और गुणों का धाम व्यक्ति नहीं हो जिसकी लोभ ने मिट्टी पलीद नहीं की हो. धन के मद ने किसे टेढ़ा और प्रभुता ने किसे बहरा नहीं किया. ऐसा कौन है, जिसे स्त्री के नेत्र के वाण नहीं लगे हों. वह बहुत सी बातें समझकर गरुड़ को ईश्वर भक्ति का उपदेश देते हैं. गरुड़ का मोह दूर हो जाता है.


 

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