Published By:धर्म पुराण डेस्क

इन 10 लोगों के घर भोजन नहीं करना चाहिये..!

गरुण पुराण भगवान वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों में से एक है। गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु के पश्चात् की घटनाओं, प्रेतलोक, यमलोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरूपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा भी इस ग्रन्थ में कई मानव उपयोगी बातें लिखी हैं जिनमें से एक है की किस तरह के लोगों के घर भोजन नहीं करना चाहिए।

क्योंकि एक पुरानी कहावत है, जैसा खाएंगे अन्न, वैसा बनेगा मन। यानी हम जैसा भोजन करते हैं, ठीक उसी प्रकार के विचार बनते हैं। इसका सबसे सशक्त उदाहरण महाभारत में मिलता है जब तीरों की शैय्या पर पड़े भीष्मपितामह से द्रौपदी पूछती है– आखिर क्यों उन्होंने भरी सभा में मेरे चीरहरण का विरोध नहीं किया जबकि वो सबसे बड़े और सबसे सशक्त थे। तब भीष्मपितामह कहते है की मनुष्य जैसा अन्न खाता है वैसा ही उसका मन हो जाता है। उस समय मैनें कौरवों का अधर्मी अन्न खाया था इसलिए मेरा मन भी वैसा ही हो गया और मुझे उस कृत्य में कुछ गलत दृष्टि नहीं आया।

हमारे समाज में एक परंपरा बहुत पुराने समय से चली आ रही है कि लोग एक-दूसरे के घर पर भोजन करने जाते हैं। कई बार दूसरे लोग हमें खाने की वस्तुएं देते हैं। वैसे तो यह एक सामान्य- सी बात है, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि किन लोगों के यहाँ हमें भोजन नहीं करना चाहिए।

गरुड़ पुराण के आचार काण्ड में बताया गया है कि हमें किन 10 लोगों के यहाँ भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि हम इन लोगों के द्वारा दी गई खाने की वस्तुएँ खाते हैं या इनके घर भोजन करते हैं तो इससे हमारे पापों में वृद्धि होती है। यहाँ जानिए ये 10 लोग कौन-कौन हैं और इनके घर पर भोजन क्यों नहीं करना चाहिए।

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 चोर या अपराधी

कोई व्यक्ति चोर है, न्यायालय में उसका अपराध सिद्ध हो गया है तो उसके घर का भोजन नहीं करना चाहिए। चोर के यहाँ का भोजन करने पर उसके पापों का असर हमारे जीवन पर प्रभाव डालता है।

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कुलीन समाज की स्त्री वेश्यावृत्ति से जीविका चलाने वाली

इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो स्त्री कुलीन होने के पश्चात् भी स्वेच्छाचारिणी होती है अर्थात् अपने शरीर को बेचकर अपनी जीविका चलाती है वो हजारों वेश्याओं के समान होती है। उसके हाथ से बना हुआ और उसके घर पर जाकर भोजन नहीं करना चाहिए। यहाँ चरित्रहीन स्त्री का अर्थ यह है कि जो स्त्री स्वेच्छा से पूरी तरह अधार्मिक आचरण करती है। गरुड़ पुराण में लिखा है कि जो व्यक्ति ऐसी स्त्री के यहाँ भोजन करता है, वह भी उसके पापों का फल प्राप्त करता है।

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 ब्याज का कार्य  करने वाला

वैसे तो आज के समय में काफी लोग ब्याज पर दूसरों को पैसा देते हैं, लेकिन जो लोग दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए अनुचित रूप से अत्यधिक ब्याज प्राप्त करते हैं, गरुड़ पुराण के अनुसार उनके घर पर भी भोजन नहीं करना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में दूसरों की मजबूरी का अनुचित लाभ उठाना पाप माना गया है। गलत ढंग से कमाया गया धन, अशुभ फल ही देता है।

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 रोगी व्यक्ति

यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है, कोई व्यक्ति छूत के रोग का मरीज है तो उसके घर भी भोजन नहीं करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति के यहाँ भोजन करने पर हम भी उस बीमारी के शिकार हो सकते हैं। लम्बे समय से रोगी मनुष्य के घर के वातावरण में भी बीमारियों के कीटाणु हो सकते हैं जो कि हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहूँचा सकते हैं।

।।5।।

अत्यधिक क्रोधी

क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है। अक्सर क्रोध के आवेश में व्यक्ति अच्छे और बुरे का फर्क भूल जाता है। इसी कारण व्यक्ति को हानि भी उठानी पड़ती है। जो लोग हमेशा ही क्रोधित रहते हैं, उनके यहाँ भी भोजन नहीं करना चाहिए। यदि हम उनके यहाँ भोजन करेंगे तो उनके क्रोध के गुण हमारे अंदर भी प्रवेश कर सकते हैं।

।।6।।

नपुंसक या किन्नर

किन्नरों को दान देने का विशेष विधान बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इन्हें दान देने पर हमें अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि इन्हें दान देना चाहिए, लेकिन इनके यहाँ भोजन नहीं करना चाहिए। किन्नर कई प्रकार के लोगों से दान में धन प्राप्त करते हैं। इन्हें दान देने वालों में अच्छे-बुरे, दोनों प्रकार के लोग होते हैं।

।।7।।

निर्दयी व्यक्ति

यदि कोई व्यक्ति निर्दयी है, दूसरों के प्रति मानवीय भाव नहीं रखता है, सभी को कष्ट देते रहता है तो उसके घर का भी भोजन नहीं खाना चाहिए। ऐसे लोगों द्वारा अर्जित किए गए धन से बना भोजन हमारा स्वभाव भी वैसा ही बना सकता है। हम भी निर्दयी बन सकते हैं। जैसा भोजन हम करते हैं, हमारी सोच और विचार भी वैसे ही बनते हैं।

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निर्दयी राजा

यदि कोई राजा निर्दयी है,और अपनी प्रजा का ध्यान न रखते हुए सभी को कष्ट देता है तो उसके यहाँ का भोजन नहीं करना चाहिए। राजा का कर्तव्य है कि प्रजा का ध्यान रखें और अपने अधीन रहने वाले लोगों की आवश्यकताओं को पूरी करें। जो राजा इस बात का ध्यान न रखते हुए सभी को दुखी करता है, उसके यहां का भोजन नहीं करना चाहिए।

 ।।9।।

 चुगलखोर व्यक्ति

जिन लोगों की आदत दूसरों की चुगली करने की होती है, उनके यहाँ या उनके द्वारा दिए गए भोजन को भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। चुगली करना बहुत बुरी आदत है। चुगली करने वाले लोग दूसरों को परेशानियों में उलझा देते हैं और स्वयं आनन्द उठाते हैं। इस काम को भी पाप की श्रेणी में रखा गया है। अत: ऐसे लोगों के यहाँ भोजन करने से बचना चाहिए।

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नशीले पदार्थ बेचने वाले

नशा करना भी पाप की श्रेणी में ही आता है और जो लोग नशीली चीजों का व्यापार करते हैं, गरुड़ पुराण में उनके यहां भोजन करना निषेध माना गया है। नशे के कारण कई लोगों के घर नष्ट हो जाते हैं। इसका दोष नशा बेचने वालों को भी लगता है। ऐसे लोगों के यहाँ भोजन करने पर उनके पाप का असर हमारे जीवन पर भी होता है।

 

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