शिव-तत्व का ज्ञान तो भगवान स्वयं ही दे सकते हैं| जो कल्याणकारक हैं, वे शिव हैं| यहाँ भगवान शिव से संबंधित जितना भी मुझे ज्ञात है उसके साथ-साथ कुछ शब्दों के अर्थ भी दे रहा हूँ|
(1) शिवलिंग का अर्थ- शिवलिंग का अर्थ है वह परम मंगल और कल्याणकारी परम चैतन्य जिसमें सब का विलय हो जाता है| सारा अस्तित्व, सारा ब्रह्मांड ही शिव लिंग है| स्थूल जगत का सूक्ष्म जगत में, सूक्ष्म जगत का कारण जगत में और कारण जगत का सभी आयामों से परे तुरीय चेतना में विलय हो जाता है| उस तुरीय चेतना का प्रतीक हैं|
शिवलिंग, जो साधक के कूटस्थ यानि ब्रह्मयोनी में निरंतर जागृत रहता है| उस पर ध्यान से चेतना ऊर्ध्वमुखी होने लगती है| लिंग का शाब्दिक शास्त्रीय अर्थ है विलीन होना| शिवत्व में विलीन होने का प्रतीक है शिवलिंग|
(2) शिवत्व- शिव-तत्व को जीवन में उतार लेना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है| यही हमारा लक्ष्य है|
(3) शिव का अर्थ है- कल्याणकारी|
(4) शम्भू का अर्थ है- मंगलदायक|
(5) शंकर का अर्थ है- शमनकारी और आनंददायक|
ब्रहृमा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही है| इनमें कोई भेद नहीं है|
(6) पंचमुखी महादेव- योगियों को गहन ध्यान में कूटस्थ में एक स्वर्णिम आभा के मध्य एक नीला प्रकाश दिखाई देता है जिसके मध्य में एक श्वेत पंचकोणीय नक्षत्र दिखाई देता है| वह पंचकोणीय नक्षत्र पंचमुखी महादेव है| गहन ध्यान में योगीगण उसी का ध्यान करते हैं|
ब्रह्मांड पांच तत्वों से बना है- जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश| भगवान शिव पंचानन अर्थात पाँच मुख वाले है|
शिवपुराण के अनुसार ये पाँच मुख हैं- ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात|
(1) भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख का नाम 'ईशान' है जो आकाश तत्व के अधिपति हैं| इसका अर्थ है सबके स्वामी|
(2) पूर्वमुख का नाम 'तत्पुरुष' है, जो वायु तत्व के अधिपति हैं|
(3) दक्षिणी मुख का नाम 'अघोर' है जो अग्नि तत्व के अधिपति हैं|
(4) उत्तरी मुख का नाम वामदेव है, जो जल तत्व के अधिपति हैं|
(5) पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है, जो पृथ्वी तत्व के अधिपति हैं|
अन्य अर्थ:-
(1) भूतनाथ का अर्थ:- भगवान शिव पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति हैं इसलिए ये 'भूतनाथ' कहलाते हैं|
(2) महाकाल का अर्थ:- भगवान शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' कहलाते है|
(3) काल का अर्थ:-तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण ये पाँचों मिल कर काल कहलाते हैं| ये काल के पाँच अंग हैं|
(4) शिव परिवार:- शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदीश्वर| ये पांचों मिलकर शिव-परिवार कहलाते हैं| नन्दीश्वर साक्षात धर्म हैं|
(5) पंचाक्षरी मंत्र:- शिवजी की उपासना पंचाक्षरी मंत्र 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है| साधना में प्रयुक्त रुद्राक्ष भी सामान्यत: पंचमुखी ही होता है|
(6) परमशिव और त्रिपुरारी का अर्थ:- जो परम कल्याणकारी हैं वे परमशिव हैं| परमशिव एक अनुभूति है| ब्रह्मरंध्र से परे परमात्मा की विराट अनंतता का सचेतन बोध परमशिव की अनुभूति है| तब साधक स्वयं ही परमशिव हो जाता है|
भगवान परमशिव दुःख तस्कर हैं| तस्कर का अर्थ होता है- जो दूसरों की वस्तु का हरण कर लेता है| भगवन परमशिव अपने भक्तों के सारे दुःख और कष्ट हर लेते हैं| वे जीवात्मा को संसार जाल, कर्मजाल और मायाजाल से मुक्त कराते हैं| जीवों के स्थूल, सूक्ष्म और कारण देह के तीन पुरों को ध्वंस कर महा चैतन्य में प्रतिष्ठित कराते है अतः वे त्रिपुरारी हैं|
(7) ब्रह्म का अर्थ:- परमात्मा के लिए ब्रह्म शब्द का प्रयोग किया जाता है| ब्रह्म शब्द का अर्थ है जिनका निरंतर विस्तार हो रहा है, जो सर्वत्र व्याप्त है, वे ब्रह्म हैं|
(8) आत्मलिंग का अर्थ:- सूक्ष्म देह के भीतर सुषुम्ना नाड़ी के भीतर एक शिवलिंग तो मूलाधार चक्र के बिलकुल ऊपर है| मूलाधार से सहस्त्रार तक एक ओंकारमय दीर्घ शिवलिंग है| मेरुदंड में सुषुम्ना के सारे चक्र उसी में हैं|
एक शिवलिंग आज्ञा चक्र से ऊपर उत्तरा-सुषुम्ना में है| मानसिक रूप से उसी में रहते हुए
परमशिव अर्थात ईश्वर की कल्याणकारी ज्योतिर्मय सर्वव्यापकता का ध्यान किया जाता है| ध्यान भ्रूमध्य से आरम्भ करते हुए सहस्त्रार पर ले जाएँ और श्री गुरु चरणों में आश्रय लेते हुए वहीं से करें|
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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