जो दिखाई देता है वह सत्य होता है तथा जो मिट जाता है वह असत्य होता है। यह संसार जो दिखाई देता है तथा मिट जाता है, सत्य एवं असत्य का मिश्रण है।
सत्य प्रकाश स्वरूप तथा असत्य अंधकार स्वरूप होने के कारण कभी एक साथ नहीं रह सकते हैं परंतु स्वप्न ही एक ऐसी अवस्था है जिसमें दिखाई देने वाला तथा मिटने वाला सत्य और असत्य एक साथ रहता है। अतः यह संसार स्वप्न है।
इस स्वप्न जगत में जो कुछ भी दिखाई देता है इसमें चार शक्तियां है। पहली शक्ति माया है जिसके तीन गुणों के द्वारा स्वप्न में आकार बनता है, परंतु माया स्वयं इसे खड़ा करने में समर्थ नहीं है इसलिए इसको ब्रह्म (अक्षर पुरुष का मन ज्योति स्वरूप) की सहायता लेनी पडती है।
अत: ब्रह्म इस स्वप्न जगत की दूसरी शक्ति है, जिसके कारण ही यह संसार दिखाई देता है। स्वप्न जगत की तीसरी शक्ति काल है जो दिखने वाले प्रत्येक सजीव तथा निर्जीव आकार को मिटाने का कार्य करती है।
संसार में यह दिखाई देने वाला आकार दो प्रकार का है- सजीव (चल) तथा निर्जीव (विचल)। सजीव में एक चौथी शक्ति और है, जिसे जीव कहते हैं। अत: संसार में चार प्रकार की शक्तियां माया, ब्रह्म, काल, तथा जीव हैं।
जब प्रकृति (माया) अपनी निर्विशेष रूप में निराकार अवस्था में रहती है, तब उसे मूल प्रकृति कहते हैं। इस अवस्था में प्रकृति अपने तीनो गुणों (सत, रज, तम) को समेट कर सुप्तावस्था में अक्षर ब्रह्म में रहती है। यही माया का मूल रूप है।
जब अक्षर पुरुष (ब्रह्मा) के चित्त में मूल प्रकृति का काल से मिलन होता है तब मोह जल रूपी अंधकार सर्वत्र फैल जाता है। इसे शास्त्रों में मोहजल अथवा नींद कहा है। इस काल शक्ति का निर्विशेष रूप अक्षर पुरुष में काल निरंजन के रूप में रहता है।
सृष्टि रचना हेतु सबसे पहले माया तथा काल शक्ति का अक्षर पुरुष के चित्त में मिलन हुआ जिससे मोह जल रुपी अंधकार प्रकट हुआ। इस मोहजल में अक्षर पुरुष की चित्त की वृत्तियों का अंडा(स्वप्न की रचना का कल्पना रुपी बीज) हिरण्यगर्भ अंड के रूप में बनता है। यह अंडा ही अहंकार है।
अक्षर ब्रह्म के मन (ज्योति स्वरूप) का अंश जब अंडे में प्रवेश करता है तब वह अंडा फूटता है और उससे तीन गुणो (सत, रज, तम) के शरीर को लेकर काल पुरुष प्रकट होते हैं। यह काल पुरुष का मन ही चेतन के रूप में तीसरी शक्ति है, जो सर्वत्र स्वप्न जगत में व्याप्त है तथा सृष्टि रचना के लिए उत्तरदायी है।
माया के तमोगुण से पांच तत्व-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश उत्पन्न हुए, जो स्वप्न की सृष्टि की रचना के आधार हैं, जिससे चौदह लोकों का ब्रह्मांड बनता है। जिसमें चौथी शक्ति के रूप में जीवो का इस स्वप्न जगत में प्रकटीकरण हुआ।
जीव, माया, काल तथा ब्रह्म इन चारों का मूल स्वरूप निराकार है। सृष्टि रचना के पूर्व ये सभी अनादि रूप में अक्षर ब्रह्म की शक्ति के रूप में उनके अंदर स्थित थे।
दही के मथने से मक्खन उत्पन्न होता है क्योंकि दही के मूल रूप दूध में ही मक्खन था। यदि जल के अंदर मक्खन होता तो जल को मथने से भी मक्खन उत्पन्न हो सकता था। यदि कारण के अंदर कोई गुण नहीं होता हो, तो वह कार्य में किस प्रकार आ सकता है?
इसी प्रकार जीव का कल्पना रुपी बीज यदि अक्षर ब्रह्म के अंदर नहीं होता तो इस स्वप्न जगत में जीव की उत्पत्ति माया, काल तथा ब्रह्म भी किस प्रकार कर सकते थे?
सृष्टि रचना के पूर्व जीव कल्पना रूपी बीज के रूप में अक्षरब्रह्म में स्थित था। उस समय इसके पास शरीर नहीं था। सृष्टि रचना के पश्चात ही जीव को माया तथा ब्रह्म के द्वारा शरीर प्राप्त हुआ। ये चारों शक्तियां, जब तक स्वप्न जगत रहता है, तब तक कायम रहती हैं इसके पश्चात वे अपने मूल में चली जाती हैं।
बजरंग लाल शर्मा
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