Published By:बजरंग लाल शर्मा

 मानव जीव को प्राप्त चार अनमोल वस्तु.. 

 मानव जीव को प्राप्त चार अनमोल वस्तु..                  

"वृथा का निगमों रे, पामी पदारथ चार।       

उतम मानखो खंड भरतनो, श्रेष्ठ कुली सिरदार।।"       

महामति प्राणनाथ जी कहते हैं कि हे मानव जीव! तू कितना भाग्यशाली है? तुम्हारे ऊपर परमात्मा की कितनी कृपा हुई है कि तुम्हें यह मानव का शरीर मिला। 84 लाख योनियों में सबसे उत्तम योनि मानव शरीर है। देवता लोग भी इस शरीर को प्राप्त करने के लिए तरसते हैं ।

हे जीव! तू कितना भाग्यशाली है कि तुम्हें इसी ब्रह्मांड में नौ खंडों में श्रेष्ठ भारत खंड में जन्म लेने का अवसर प्राप्त हुआ है। यह परमात्मा की तुम पर  दूसरी कृपा है।                 

परमात्मा की तीसरी सबसे बड़ी कृपा तुम पर यह हुई कि तुम्हारा जन्म इसी वराह कल्प के 28 वें कलयुग में हुआ है। इस 28 वें कलयुग की महिमा बहुत बड़ी है शास्त्रों में इसका बहुत गुणगान किया गया है।          

परमात्मा की चौथी कृपा तुम पर यह हुई कि तुम्हें श्रेष्ठ सतगुरु एवं उनका  ब्रह्म ज्ञान (परा ज्ञान) प्राप्त करने का अवसर मिला है।

शास्त्रों में यह भविष्यवाणी की गई है कि जब वराह कल्प का 28 वां कलयुग होगा तब इस भरतखंड में परमधाम से ब्रह्म आत्माओं का अवतरण होगा । इन ब्रह्म आत्माओं को पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के द्वारा यह दुख रूपी नश्वर संसार दिखाने की बात कही गई है। इनके कारण ही इस भारत भूमि पर  सतगुरु एवं उनके परा ज्ञान के उतरने का विधान है ताकि उन्हें जाग्रत कर  परमधाम लौटाया जा सके।

इस प्रकार प्रत्येक मानव जीव को यह शुभ अवसर प्राप्त हो गया है कि वह ब्रह्म आत्माओं के लिए अवतरित सद्गुरु के परा ज्ञान के द्वारा पूर्ण ब्रह्म परमात्मा को जान कर अपना कल्याण कर सके।

अतः हे मानव जीव! तू कितना भाग्यशाली है कि तुम्हें अनायास ही पराज्ञान  की अनमोल वस्तु प्राप्त हो गई है जो कभी बड़े-बड़े ऋषि मनीषियों को भी प्राप्त नहीं हुई थी।

जिस प्रकार मकड़ी स्वयं जाल बना कर उसमें ही फंस जाती है और अंत में  उसी में मर जाती है। उसी प्रकार संसार के प्राणी भी स्वयं अपने कुटुंब परिवार का जाल रचते हैं तथा स्वयं उसी जाल में फंसकर मृत्यु के मुख में  चले जाते हैं।

पानी में रहने वाले जीव बिना पानी के जी नहीं सकते, उन्हें पानी से बाहर निकाल कर विविध प्रकार के सुख भी दिए जाएं, तब भी वे एक क्षण के लिए भी पानी को नहीं छोड़ सकते हैं। इसी प्रकार झूठे भवसागर के लोग भी इस भवसागर को नहीं छोड़ सकते हैं। उन्हें अनेक प्रकार के अखंड सुख दिए जाएं फिर भी वे संसार रूपी घर को नहीं छोड़ना चाहते हैं।

इस भवसागर को ही मोह सागर कहा है और यह मोह जब तक नहीं छूटेगा तब तक जीव का आवागमन नहीं मिटेगा। यह तभी संभव है जब इसे सद्गुरु मिले और उनके परा ज्ञान के द्वारा इस मोह के बंधन को काट दिया जाए ।

बजरंग लाल शर्मा 

              


 

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