मानव जीवन को चार अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है - बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था। इन अवस्थाओं में हर एक का अपना महत्व होता है और यह जीवन का विकास और अनुभव का हिस्सा होता है।
1. बचपन (Childhood): बचपन जीवन की सबसे पहली अवस्था होती है। इसमें मन-मस्तिष्क का पूरी तरह से विकास नहीं होता और बच्चे केवल अपने आस-पास की दुनिया को समझने की कोशिश करते हैं।
2. किशोरावस्था (Adolescence): किशोरावस्था जीवन की दूसरी अवस्था है, जब युवा व्यक्ति अपने शारीरिक और मानसिक विकास के साथ-साथ अपनी पहचान और समझने की कोशिश करते हैं। इस अवस्था में वे अपनी पहचान और स्वाभाविक बदलावों का सामना करते हैं।
3. युवावस्था (Youth): युवावस्था जीवन की तीसरी अवस्था है, जिसमें व्यक्ति अपने करियर, परिवार और समाज में अपनी जगह बनाने का सफर तय करते हैं। इस अवस्था में उनके पास समय होता है अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए और अपने पोटेंशियल को पूरी तरह से विकसित करने के लिए।
4. वृद्धावस्था (Old Age): वृद्धावस्था जीवन की आखिरी अवस्था होती है, जब व्यक्ति अपने जीवन के अनुभवों की सारी बातें अपने साथ लेते हैं। इस अवस्था में उनकी शारीरिक क्षमता कम हो सकती है, लेकिन उनके पास अनुभव और ज्ञान होता है जो उन्हें जीवन की सच्चाई के प्रति अधिक समझदार बनाता है।
यह अवस्थाएँ जीवन का सामयिक और स्थायी पहलु होती हैं और यह सभी जीवन के अटल हिस्से हैं। यही कारण है कि इन अवस्थाओं को समझकर और सही तरीके से निर्धारित करके हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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