Published By:धर्म पुराण डेस्क

प्रोस्टेट कैंसर पता लगाने में सहायक चार टेस्ट

डॉ. प्रदीप चंद्राकर एम.डी. ऑन्कोलॉजी कहते हैं कि प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों को प्रभावित करने वाले आम कैंसर में से एक है। इनमें से कुछ बहुत धीमे बढ़ने वाले होते हैं और ये अक्सर हार्मोन सेंसिटिव होते हैं। इनका इलाज विशेष इंजेक्शन्स या गोलियों से भी हो सकता है। 

एडवांस कैंसर अक्सर हार्मोन रजिस्टेंस होते हैं और इनमें सर्जरी, कीमो और रेडियोथैरेपी की जरूरत होती है। लोकली कन्फाइंड कैंसर सिर्फ सिकाई से भी नियंत्रित हो सकता है। आज इस सिकाई के लिए भी उन्नत तरीके मौजूद हैं। जिनसे बिना साइड इफेक्ट्स हाई डोज रेडिएशन दे सकते हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि में रहते ही यह नियंत्रित हो जाएं तो इलाज सफल होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

बायोप्सी है जरूरी-

यूं लक्षण कई बार सहज नजर आ सकते हैं, लेकिन लोग इसे लेकर कम सतर्क रहते हैं। रूटीन जांच के दौरान कई बार असामान्य जांच परिणाम आने पर डॉक्टर आगे की जांच के लिए कहते हैं। लेकिन यह प्रोस्टेट कैंसर ही है, इस बात को साबित करने के लिए जरूरी है बायोप्सी। बायोप्सी के पूर्व अन्य कुछ जांचों के लिए भी डॉक्टर कह सकते है जो बायोप्सी की जरूरत को दर्शा सकती हैं। इनमें शामिल हैं-

• डिजिटल रेक्टल एक्जाम (डीआरई)।  

• प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन (पीएसए) टेस्ट। 

• ट्रांसरेक्टल अल्ट्रासाउंड (टीआरयूएस)।  

• पेशाब की जांच जो एमआई प्रोस्टेट स्कोर (एमआईपीएस) का निर्धारण करना। 

पीएसए जांच की जरूरत-

प्रोस्टेट कैंसर के लिए यह एक आम जांच है। प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन एक प्रोटीन है जो प्रोस्टेट ग्रंथि से आता है। पीएसए जांच दो प्रकार की हो सकती है। इसमें से बाउंड पीएसए प्रोटीन से जुड़ा हो सकता है लेकिन फ्री पीएसए नहीं। इसके अंतर्गत रक्त में पीएसए की मात्रा मापी जाती है। 

पीएसए का बढ़ा हुआ स्तर प्रोस्टेट कैंसर का संकेत हो सकता है। हालांकि यह एक बहुत सामान्य रक्त जांच है लेकिन कुछ पुरुषों में यह जीवन बचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। समस्या यह है कि पीएसए के स्तर का बढ़ना अन्य मुश्किलों जैसे यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन या प्रोस्टेट में सूजन की वजह से भी हो सकता है। 

इसलिए एकमात्र इस जांच से कैंसर की सटीक पुष्टि नहीं हो सकती। विशेषज्ञों का मानना है कि पीएसए जांच खासतौर पर प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के दौरान और उसके बाद अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है।

बायोप्सी और साइड इफेक्ट्स-

बायोप्सी कैंसर को स्पष्ट करने के लिए सबसे ठोस और सटीक तरीका है। इसलिए तमाम जांचों में मिली असामान्यता के बाद डॉक्टर इसकी सलाह देते हैं। बायोप्सी के पहले डॉक्टर बकायदा पूरा परीक्षण करते हैं। उस दौरान यदि परिवार में पहले से किसी को यह समस्या रही हो तो डॉक्टर को जरूर बताएं। इससे बायोप्सी करवाने या न करवाने के निर्णय पर बड़ा असर पड़ता है। 

यह भी ध्यान रखिये कि हर बायोप्सी रिपोर्ट में कैंसर ही निकले यह जरूरी नहीं, लेकिन इससे एक निश्चितता आ जाती है। बायोप्सी की प्रक्रिया हालांकि बहुत सामान्य होती है और यह आउटपेशेंट (बिना अस्पताल में भर्ती हुए) की जा सकती है। लेकिन कई बार इसके कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। जैसे-

प्रक्रिया के बाद कुछ दिनों तक पेशाब करने में समस्या आना या दर्द होना कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों तक पेशाब या शौच में खून का आना संक्रमण की आशंका का बढ़ जाना। 

इन साइड इफेक्ट्स को लेकर डॉक्टर से पूरी जानकारी ले। संक्रमण के मामले में खासकर डॉक्टर आपको रिस्क कम करने के लिए एंटीबायोटिक्स देंगे, लेकिन इसके बाद भी सतर्कता रखनी जरूरी है। पर्सनल हाइजीन को लेकर सतर्कता रखना भी बहुत जरूरी है। डॉक्टर से यह राय लें कि आपको क्या क्या सावधानियां रखनी हैं।

इन बातों का भी रखें खयाल-

यह एक अच्छी बात है कि इस कैंसर के लिए भी अब पहले की तुलना में अधिक एडवांस दवाएं और इलाज उपलब्ध हैं। जो दवाएं एडवांस कैंसर के इलाज के लिए आमतौर पर दी जाती हैं वे काफी स्ट्रांग होती हैं और उनके साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं। लेकिन सही जानकारी के साथ इनका प्रबंधन किया जा सकता है। 

यदि दवाओं से थोड़ी भी असहजता हो तो तुरंत डॉक्टर से बात करें। वे दवा की मात्रा या इलाज के तरीकों में परिवर्तन कर सकते हैं। इसके अलावा सर्जरी या रेडिएशन के बाद हंसने, खांसने या छींकने जैसी प्रक्रियाओं के दौरान पेशाब निकल सकता है। इसके लिए विशेष प्रकार के व्यायाम (कीगल एक्सरसाइज) के साथ ही अल्कोहल और कैफीन की मात्रा को कम से कम कर देना भी लाभदायक हो सकता है। इसके अलावा कुछ और स्थितियों को लेकर भी जानकारी डॉक्टर से लें। जैसे-

● हार्मोन्स में होने वाले बदलावों को लेकर,

• इनफर्टिलिटी को लेकर,

● वजन का बढ़ना,

• डिप्रेशन,

• हड्डियों की सेहत,

• हॉट फ्लैशेज, आदि,

बढ़ सकती है। आशंका-

जब इलाज के दौरान टेस्टोस्टेरोन (हार्मोन) का स्तर कम होता है तो डायबिटीज, हार्ट अटैक या हाई ब्लड प्रेशर की आशंका भी बढ़ सकती है। यह भी हो सकता है कि आप पहले से ही इन समस्याओं के लिए दवा ले रहे हो। इसलिए डॉक्टर से स्थिति स्पष्ट करें। 

कई बार जीवनशैली मे थोड़े परिवर्तनों के साथ भी इन चीजो का प्रबंधन किया जा सकता है। इसलिए घबराइये नहीं। पूरी जानकारी लीजिये और सही इलाज के साथ फिर से स्वस्थ जिंदगी की ओर कदम बढाइए।


 

धर्म जगत

SEE MORE...........