 Published By:बजरंग लाल शर्मा
 Published By:बजरंग लाल शर्मा
					 
					
                    
1- नित्य प्रलय -
नित्य प्रलय में संसार में जितने भी प्राणी अथवा पदार्थ हैं उनमें निरंतर परिवर्तन होता रहता है तथा उनकी उम्र घटती चली जाती है। उनका नित्य क्षरण होता रहता है, उसी को नित्य प्रलय कहते हैं। विश्व में 84 लाख योनि वाले प्राणियों का तथा सभी पदार्थों का नित्य निरंतर जन्म-मरण तथा नाश-वृद्धि होना ही नित्य प्रलय है।
2- नैमित्तिक प्रलय -
जब ब्रह्मांड के सतलोक में स्थित ब्रह्मा जी का दिन पूरा होकर रात्रि शुरू होती है, तब इंद्र सहित शेषशाई श्री नारायण जी त्रिलोक को समेटकर शयन करते हैं अर्थात् तीनो लोको (स्वर्ग, मृत्यु, पाताल) का नाश हो जाता है। इन तीनों लोकों के अंतर्गत पाताल से स्वर्ग तक दसों लोकों के संपूर्ण प्राणी एवं पदार्थों की समाप्ति हो जाती है। उक्त प्रलय में महर्लोक की हद- सीमा तक नैमित्तिक प्रलय का जल आ जाता है। महर्लोक का भी कुछ भाग जल में डूब जाता है। जनलोक, तपलोक और सतलोक कल्प के अंत (प्राकृतिक प्रलय) तक स्थाई अमरलोक कहलाते हैं।
3- प्राकृतिक प्रलय -
सतलोक में स्थित सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के वर्ष के हिसाब से जब 50 वर्ष हो जाते हैं तब इतने काल को एक परार्ध कहते हैं। इस प्रकार दो परार्ध समय बीत जाने पर ब्रह्माजी की 100 वर्ष की आयु पूरी हो जाती है। इतना समय बीतने पर ब्रह्मा जी अपने मूल कारण को प्राप्त हो जाते हैं। उस समय पांचों तत्व अहंकार अष्ट आवरण व्यष्टि ज्योति स्वरूप तथा ब्रह्मा विष्णु महेश आदि विराट के सभी देव तथा सूक्ष्म स्वरूप की तमाम सामग्रियां अपने मूल में लय हो जाती हैं। यही प्राकृतिक प्रलय है।
4-आत्यन्तिक प्रलय -
आत्मज्ञान के द्वारा जिसका मोहात्मक बंधन छूट जाता है और उसे परमात्मा के अखंड स्वरूप का अनुभव होने लगता है तब उसका आवागमन मिट जाता है। इस प्रकार सदा सर्वदा के लिए अखंड पद को प्राप्त कर लेना ही आत्यान्तिक महाप्रलय है ।
इस प्रकार एक-एक, अलग-अलग जीव का प्रलय होना व्यष्टि प्रलय कहलाता है। व्यष्टि जीव की तरह ही ब्रह्मांड के स्थूल, सूक्ष्म, कारण और महाकारण का भी नाश हो जाना समष्टि महाप्रलय कहलाता है
जिस तरह एक व्यष्टि (जीवात्मा) का स्थूल सूक्ष्म आदि शरीर का नाश होना आत्यान्तिक महाप्रलय कहा जाता है उसी तरह जीवों को उत्पन्न करने वाला " एको अहम् बहुस्याम " कहने वाला आदिनारायण तथा समस्त क्षर समष्टि का विलीन हो जाना ही महाप्रलय कहा जाता है।
इस समष्टि महाप्रलय के अंतर्गत सगुण, निर्गुण, निराकार, सत-असत, तमाम, स्थूल, सूक्ष्म, कारण, महाकारण, महाविष्णु, आदिनारायण, महाशून्य समेत संपूर्ण क्षर समष्टि अपने मूल गोलोक धाम वासी श्री कृष्ण (अक्षर पुरुष) के मन में लीन हो जाती है।
इसे ही समष्टि आत्यान्तिक प्रलय कहा जाता है। यह व्यष्टि एवं समष्टि दो प्रकार की कही जाती है।
बजरंग लाल शर्मा
 
 
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