 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में अनेक स्थितियों से गुजरना पड़ता है। यह स्थितियां व्यक्ति के जीवन को सफल अथवा असफल बनाने में प्रभावी भूमिका का निर्वाह करती हैं।
व्यक्ति चाहे छोटा हो अथवा बड़ा, अमीर हो अथवा सामान्य व्यक्ति, सबको इन स्थितियों का सामना करना ही पड़ता है। इस दृष्टि से जगत में मनुष्यों का जीवन चार प्रकार का देखने को मिलता है-
1. निकृष्ट जीवन,
2. सामान्य जीवन,
3. सफल जीवन,
4. महत्त्वपूर्ण जीवन,
दुष्प्रवृत्तियों से घिर कर अपराध में संलग्र रहने वाले नराधमों का जीवन निकृष्ट जीवन होता है। ऐसे व्यक्ति अपने नीच कर्मों के द्वारा अपना जीवन भी व्यर्थ करते हैं तथा दूसरों के जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा करते हैं। ऐसे व्यक्ति समाज के लिये नासूर के समान होते हैं। इसलिये इन व्यक्तियों को समाज हेय दृष्टि से देखता है।
अपना एवं अपने परिवार को उचित वृत्ति उपायों से भरण-पोषण करने वाले सामान्य जीवन जीने वालों की यहां संख्या सर्वाधिक है। पेट भरने के उपायों में ही लगे रहना इनका प्रमुख ध्येय होता है। आमतौर पर ऐसे व्यक्ति अपने जीवन यापन के लिये गलत कार्य कम ही करते हैं। ऐसे व्यक्ति सामान्य जीवन जीने वालों की श्रेणी में आते हैं।
सामान्य जीवन जीते हुए भी किसी क्षेत्र में विशेष उपलब्धि अर्जित करने वालों का जीवन सफल जीवन होता है। कुछ समय तक समाज उन्हें याद करता है। उनसे बढ़ कर अन्य कोई व्यक्ति वहां आ जाने पर उनकी कीर्ति न्यून होने लग जाती है। ऐसे व्यक्ति सफल जीवन जीने वालों के वर्ग में आते हैं।
जो व्यक्ति दूसरों के दुःखों को दूर करने में संलग्न रहते हैं, अपने सुखों की परवाह नहीं करते हैं, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय को आधार मान कर जो अपने स्वार्थों को तिलांजलि देकर विश्व मंगल की प्रक्रिया में संलग्न हो जाते हैं वे महत्वपूर्ण जीवन वाले होते हैं। इन महापुरुषों की कीर्ति पताका युगों-युगों तक फहरती रहती है।
आमतौर पर प्रत्येक समाज में इन चार प्रकार के व्यक्तियों की उपस्थिति देखने को मिलती है। इसलिये समाज में अपराध, जीवन का संघर्ष, त्यागवृत्ति एवं परमार्थ के हित में स्वयं का बलिदान देने वाले लोगों के उदाहरण समय-समय पर हमारे सामने आते रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इन्हीं सभी प्रकार के व्यक्तियों के बीच जीवन जीना होता है।
 
 
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