प्रश्न: मन, बुद्धि और अहंकार के संस्कारों से कैसे मुक्त हों?
उत्तर: मन-बुद्धि-अहंकार को छेड़ो मत। उन्हें मत देखो, एक 'है' को देखो। एकदेशीयपना मिट जाए - यह भी मत देखो। कुछ भी मत देखो, चुप हो जाओ, फिर सब स्वतः ठीक हो जाएगा। समुद्र में बर्फ के ढेरों को तैरते हुए उन्हें न गलाओ, न रखो। इसे ही सहजावस्था कहते हैं।
मन, बुद्धि और अहंकार:
मन, बुद्धि और अहंकार हमारे संवेदनशील और विचारशील मानसिक प्रणाली के हिस्से हैं। संस्कार इन तीनों से उत्पन्न होते हैं और हमें जीवन के तत्वों को समझने और उसके प्रति प्रतिबद्धता बनाए रखने में मदद करते हैं।
सहजावस्था का अर्थ:
सहजावस्था में, हम अपने मन, बुद्धि और अहंकार के साथ नहीं लड़ते हैं, बल्कि हम उन्हें साकार और निराकार रूप में स्वीकार करते हैं। हम एकाग्रचित्त रूप से प्रशान्ति में रहते हैं और सभी संवेदनाएं स्वतंत्रता से उत्पन्न होने दिए जाते हैं।
चुप रहना और स्वतंत्रता:
मन, बुद्धि और अहंकार के संस्कारों से मुक्ति पाने के लिए हमें चुप रहना सीखना होता है। चुप रहने से हम स्वतंत्र होते हैं और हमारी आत्मा अपने स्वाभाविक स्थिति में लौट जाती है।
इस तरह, सहजावस्था के माध्यम से हम मन, बुद्धि और अहंकार के संस्कारों से मुक्त होकर आत्मा की निर्मलता में विलीन हो सकते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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