 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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ऋग्वेद के रात्रि सूक्त में महाकाली-
देवी पूजन की विस्तृत व्याख्या देने वाला ग्रन्थ- दुर्गा सप्तशती का उद्गम स्त्रोत ऋग्वेद का रात्रि सूक्त है। इस सूक्त में रात्रि देवी की स्तुति की गयी है। महर्षि भारद्वाज द्वारा रचित उक्त सूक्त का यहाँ भावार्थ दिया जा रहा है|
1. ॐ, सर्वव्यापी देवी ने इस सृष्टि में जीवों की रचना करने के पश्चात उनके कर्मों के फल देने के लिए इस ब्रह्मांड को अपने असंख्य वरदानों और महिमा से परिपूर्ण कर दिया।
2. यह देवी अमर हैं। वे इस सृष्टि के कण-कण में व्याप्त हैं। वे ऊर्ध्व दिशा में बढ़ने वाले सांसारिकता के वृक्ष और नीचे की ओर जाने वाली भ्रम की लताओं में विद्यमान हैं। ज्ञान के प्रकाश से वे अज्ञान रूपी अंधकार को समाप्त करने वाली है।
3. परिशुद्ध चेतना रूपी रात्रि - देवी स्वयं उत्पन्न होने के पश्चात प्रातःकाल की देवी अपनी बहन उषा को प्रकट करती हैं जो अविद्या रूपी अंधकार को विनष्ट करती हैं।
4. वे रात्रि देवी हम सबों पर प्रसन्न हों। उनके आने से ही हम सभी अपने-अपने घरों में वैसे ही गहरी नींद में सोते हैं जैसे पक्षी आनन्द पूर्वक अपने-अपने घोंसले में विश्राम करते हैं।
5. माता की स्नेहिल और प्रेममय गोद में सभी मनुष्य, गाय, घोड़े, आकाश में उड़ने वाले बाज जैसे पक्षी, कीट-पतंग और अन्य प्राणी शांतिपूर्वक सोते हैं।
6. हे रात्रिदेवी, आप हम सबों पर ऐसी कृपा करें कि हम सभी वासना रूपी मादा भेड़िया (अहंकार और अविद्या पर अवलम्बित सूक्ष्म कामनाय) और पाप कर्म रूपी नर भेड़ियों से मुक्त हो जाएं। हमें आप चोर (काम, क्रोध, मोह, लोभ इत्यादि) से छुटकारा दिलाएं और इस संसार - सागर के पार उतार दें। आप मुक्तिदायिनी माता है।
7. हे रात की अधिष्ठात्री देवी - उषा ! यह सर्वव्यापी अंधकार हमें चारों ओर से घेरे हुए है। अपने भक्तों का भार हटाने वाली देवी कृपा करके हमें अविद्या (अज्ञान) से मुक्त करें।
8. हे रात्रि - देवी! आप एक दुधारू गाय (जीवों का पोषण करने वाली) के समान हैं। अपनी प्रार्थना के द्वारा मैं आप की कृपा पाना चाहता हूँ। हे प्रकाशवान आकाश (ब्रह्म का आकाश तत्व) की पुत्री, आप की कृपा से मैंने अपने शत्रुओं (काम, क्रोध, राग-द्वेष इत्यादि) को जीत लिया है। आप मेरी पूजा स्वीकार कीजिए।
 
 
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