मनोविज्ञानी बड़ी दिलचस्पी और कुतूहल के साथ एक औसत आदमी के जीवन की एक अत्यंत सफल जीवन से तुलना करते हैं।
हाल के कुछ वर्षों में वह बड़े आग्रह से यह प्रश्न पूछते रहे हैं कि वह कौन-सी चीज है जो मनुष्य को सफल बनाती है और उसका पता लगाने के लिए वह बड़ी मेहनत और बारीकी से सफलता के तत्वों का विश्लेषण करते रहे हैं?
इस प्रश्न का उत्तर यह जान पड़ता है कि सफल सीखने वाला ही सफल मनुष्य होता है। चाहे प्रारम्भ में वह कितना ही कच्चा या अयोग्य हो, पर वह अपने को अनुशासित और सुव्यवस्थित कर लेता है, वह अपने को गढ़ लेता है और अपनी शक्तियों को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप बना लेता है।
उदाहरण के लिये यह बात अच्छी तरह प्रमाणित हो चुकी है कि यदि एक मनुष्य का चुनाव किसी ऐसे पद के लिये करना हो जहां से आगे तरक्की का अवसर हो, तो उस उम्मीदवार से कहीं ज्यादा आशा की जा सकती है, जिसने अपने को अच्छा सीखने वाला सिद्ध कर दिया है बनिस्बत एक दूसरे व्यक्ति के, जो चुनाव के समय उससे जानकारी में श्रेष्ठ है, पर जिसकी आदतें बिलकुल जमी हुई हैं और जिसमें नये-नये कामों के प्रति साहस तथा उत्साह का अभाव है।
इसी तरह किसी संस्था में नयी भर्ती करने के लिये जो लोग चुनाव करते हैं उनका ध्यान इस ओर नहीं रहता कि एक नवयुवक के पास कितना ज्ञान उन विशेष क्रियाओं का है जिन पर कि संस्था का काम अवलम्बित है, बल्कि उनका झुकाव उन नवयुवकों की ओर रहता है जिन्होंने अच्छी सामान्य शिक्षा प्राप्त की है और तीव्र प्रतियोगिता में उत्तमता से परीक्षाएँ पास की हैं।
अनुभव से यही सिद्ध होता है कि ऐसे लोग अधिकतर सीखने की योग्यता और तत्परता रखते हैं और स्वयं काम करने वाले होते हैं।
राजेंद्र बिहारी लाल
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