गणगौर का अर्थ है,'गण' और 'गौर'। गण का तात्पर्य है शिव और गौर का अर्थ है पार्वती। वास्तव में गणगौर पूजन माँ पार्वती और भगवान शिव की पूजा का दिन है।
शिव-पार्वती की पूजा का यह पावन पर्व आपसी स्नेह और साथ की कामना से जुड़ा हुआ है। इसे शिव और गौरी की आराधना का मंगल उत्सव भी कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज मनाई जाती है। इस दिन सुहागन महिलाएं सौभाग्यवती की कामना के लिए गणगौर माता यानि माता गौरा की पूजा करती हैं।
गणगौर व्रत की कहानी-
प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार शिव-पार्वती पृथ्वी पर आए। यहां देवी पार्वती को प्यास लगी तो वे दोनों एक नदी पर पहुंचे। देवी पार्वती ने जैसे ही पानी पीने हाथ नदी में डाला, उनकी हथेली में दूर्वा, टेसू के फूल और एक फल आ गया।
ये देख शिवजी ने कहा कि “आज गणगौर तीज है। इस दिन महिलाएं अपने सुहाग की सुख-समृद्धि के लिए गौरी उत्सव मनाती हैं और नदी में ये सभी चीजें प्रवाहित करती हैं। ये सब वही चीजें हैं। देवी पार्वती ने कहा कि “ आप मेरे लिए यहां एक नगर बनवा दें, जिससे सभी महिलाएं यहां आकर व्रत करें तो मैं स्वयं उन्हें सुहाग की रक्षा का आशीर्वाद दूंगी।” शिवजी ने ऐसा ही किया।
जब महिलाओं को ये पता चला तो वे सभी देवी पार्वती के नगर में आकर ये व्रत करने लगी। ये देख देवी पार्वती बहुत प्रसन्न हुई और व्रत पूर्ण होने पर उन्होंने सभी महिलाओं को सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया।
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