गढ़ कालिका देवी मंदिर, धार शहर के मुकुटमणि के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर प्राचीन भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक अनूठा उदाहरण है और भगवती कालिका को समर्पित है, जो धार के पंवार राजवंश की कुलदेवी हैं।
मंदिर का इतिहास:
गढ़ कालिका देवी मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था। 1770 में, पंवार राजा यशवंत राव पंवार प्रथम की पत्नी सकवारबाई ने अपने पति की मृत्यु के बाद इस मंदिर का निर्माण करवाया था। उन्होंने मंदिर के साथ-साथ सात अन्य मंदिरों का भी निर्माण करवाया, जिनमें नौगांव गणेश मंदिर और मांडू राम मंदिर शामिल हैं।
मंदिर की वास्तुकला:
यह मंदिर धार शहर की सबसे ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और देवी सागर तालाब के पास स्थित है। मंदिर का शिखर परमार स्थापत्य शैली का बताया जाता है। मंदिर के सामने सुंदर काले पत्थर की दीपों की श्रृंखला भी स्थित है।
देवी कालिका:
गढ़ कालिका देवी मंदिर में देवी कालिका की मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति महाराष्ट्र के कोठे गांव से लाई गई थी। देवी कालिका को पंवार वंश की कुलदेवी माना जाता है।
मंदिर के विशेषताएं:
इस मंदिर की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि यहां देवी की पूजा एक विवाहित महिला के रूप में की जाती है।
मंदिर में भक्त उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तो वे दोबारा यहां आते हैं और दायां स्वास्तिक बनाते हैं।
गढ़ कालिका देवी मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह मंदिर धार शहर की शान है और हर साल लाखों भक्त यहां दर्शन करने आते हैं।
यह भी ध्यान दें:
मंदिर में प्रवेश करते समय, उचित वेशभूषा पहने और मंदिर के नियमों का पालन करें।
मंदिर में दर्शन के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा होता है।
मंदिर परिसर में कई दुकानें हैं जहाँ आप धार्मिक सामग्री और स्मृति चिन्ह खरीद सकते हैं।
गढ़ कालिका देवी मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य:
यह मंदिर 1000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने के लिए 1000 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है।
मंदिर में हर साल नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के दौरान विशेष उत्सव आयोजित किए जाते हैं।
आशा है कि यह लेख आपको गढ़ कालिका देवी मंदिर के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मददगार होगा।
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