 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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जन्म कुंडली में शनि स्वमित्र, उच्च राशि-नवांश का, शुभ भावाधिपति, षड्बली , शुभ युक्त-दृष्ट हो तो शनि की दशा में राज सम्मान, सुख वैभव, धर्म लाभ, ग्राम- नगर व किसी संस्था के प्रधान पद की प्राप्ति, जन समर्थन, शनि के कारकत्व वाले पदार्थों से लाभ, पश्चिम दिशा से लाभ, स्टील, कोयला व तेल कंपनियों के शेयरों से लाभ, समाज कल्याण के कार्य, पुराने आवास व वाहन की प्राप्ति , आध्यात्मिक ज्ञान व चिंतन, विचारों में स्थिरता व प्रौढ़ता, व्यवसाय में सफलता , पशुओं के व्यापार में सफलता, वृद्धा स्त्री का संसर्ग प्राप्त होता है |
जिस भाव का स्वामी शनि होता है उस भाव से विचारित कार्यों व पदार्थों में सफलता व लाभ होता है |
यदि शनि अस्त, नीच शत्रु राशि नवांश का, षड्बल विहीन, अशुभ भावाधिपति पाप युक्त दृष्ट हो तो शनि की अशुभ दशा में उद्वेग, वाहन नाश, अप्रीति, स्त्री व स्वजनों से वियोग, पराजय, शराब व जुआ से अपकीर्ति, वात जन्य रोग, शुभ कार्यों में असफलता, बंधन, आलस्य, निराशा, मानसिक तनाव, शरीर में शुष्कता व खुजली, थकान, शरीर पीड़ा, अंग भंग, नौकर व संतान से विरोध होता है |
शनि के कारकत्व वाले पदार्थों से हानि होती है | जिस भाव का स्वामी शनि होता है उस भाव से विचारित कार्यों व पदार्थों में असफलता व हानि होती है |
जन्म या नाम राशि से 3, 6, 11वें स्थान पर शनि शुभ फल देता है | शेष स्थानों पर शनि का भ्रमण अशुभ कारक होता है |
जन्मकालीन चंद्र से प्रथम स्थान पर शनि का गोचर (साढ़ेसाती के मध्य के अढ़ाई वर्ष) अपमान, असफलता, शारीरिक व मानसिक पीड़ा, राज्य से भय , आर्थिक हानि देता है | बुद्धि ठीक से काम नहीं करती व शरीर निस्तेज और मन अशांत रहता है |
दूसरे स्थान पर शनि के गोचर (साढ़ेसाती के अंतिम अढ़ाई वर्ष) से घर में अशांति और कलह क्लेश होता है | धन की हानि, नेत्र या दांत में कष्ट होता है | परिवार से अलग रहना पड़ जाता है |
तीसरे स्थान पर शनि का गोचर आरोग्यता, मित्र व व्यवसाय लाभ, शत्रु की पराजय, साहस वृद्धि, शुभ समाचार प्राप्ति, भाग्य वृद्धि, बहन व भाई के सुख में वृद्धि व राज्य से सहयोग दिलाता है |
चौथे स्थान पर शनि के गोचर से स्थान परिवर्तन, स्वजनों से वियोग या विरोध, सुख हीनता, मन में स्वार्थ व लोभ का उदय, वाहन से कष्ट, छाती में पीड़ा होती है |
पांचवें स्थान पर शनि के गोचर से भ्रम, योजनाओं में असफलता, पुत्र को कष्ट, धन निवेश में हानि व उदर विकार होता है |
छठे स्थान पर शनि के गोचर से धन अन्न व सुख की वृद्धि, रोग व शत्रु पर विजय व संपत्ति का लाभ होता है |
सातवें स्थान पर शनि के गोचर से दांत व जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोग, मूत्र विकार, पथरी, यात्रा में कष्ट, दुर्घटना, स्त्री को कष्ट या उस से विवाद, आजीविका में बाधा होती है|
आठवें स्थान पर शनि के गोचर से धन हानि, कब्ज, बवासीर इत्यादि गुदा रोग, असफलता, स्त्री को कष्ट, राज्य से भय, व्यवसाय में बाधा, पिता को कष्ट, परिवार में अनबन, शिक्षा प्राप्ति में बाधा व संतान सम्बन्धी कष्ट होता है |
नौवें स्थान पर शनि के गोचर से भाग्य की हानि, असफलता, रोग व शत्रु का उदय, धार्मिक कार्यों व यात्रा में बाधा आती है |
दसवें स्थान पर शनि के गोचर से मानसिक चिंता, अपव्यय, पति या पत्नी को कष्ट, कलह, नौकरी व्यवसाय में विघ्न, अपमान, कार्यों में असफलता, राज्य से परेशानी होती है |
ग्यारहवें स्थान पर शनि के गोचर से धन ऐश्वर्य की वृद्धि, लोहा–चमड़ा–कोयला –सीमेंट–पत्थर–लकड़ी–मशीनरी आदि से लाभ, आय में वृद्धि, रोग व शत्रु से मुक्ति, कार्यों में सफलता, मित्रों का सहयोग मिलता है |
बारहवें स्थान पर शनि के गोचर (साढ़ेसाती के आरम्भ के अढ़ाई वर्ष) से धन की हानि, खर्चों की अधिकता, संतान को कष्ट, प्रवास, परिवार में अनबन व भाग्य कि प्रतिकूलता होती है |
(गोचर में शनि के उच्च, स्वमित्र, शत्रु नीच आदि राशियों में स्थित होने पर, अन्य ग्रहों से युति, दृष्टि के प्रभाव से, अष्टकवर्ग फल से या वेध स्थान पर शुभाशुभ ग्रह होने पर उपरोक्त गोचर फल में परिवर्तन संभव है|)
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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