Published By:अतुल विनोद

गीता और सिद्धायोग भाग 2 - अज्ञान से ज्ञान की ओर 

ईश्वर को समझ पाना एक आम इंसान के बस की बात नहीं। श्रीमद् भागवत गीता का ज्ञान मिलने के बाद अर्जुन श्रीकृष्ण को परब्रह्म और पूर्ण ब्रह्म के रूप में स्वीकार कर लेता है। यूं तो श्री कृष्ण उनके मित्र और सखा के रूप में एक आम इंसान ही नजर आते थे लेकिन जब श्री कृष्ण के माध्यम से अर्जुन के अंदर श्रीमद् भागवत गीता रूपी सिद्ध योग का उद्घाटन होता है और इससे जब उसके अंतर चक्षु खुल जाते हैं तब उसे भगवान श्री कृष्ण का वास्तविक स्वरूप पता चलता है।

तब उसे यह अनुभव होता है कि श्री कृष्ण कोई साधारण दिव्य पुरुष नहीं बल्कि पूर्ण सत्य परब्रह्म हैं। वे सबके परम आश्रय हैं परमधाम हैं। सबसे शुद्ध भौतिक कलमशों से मुक्त और परम भोक्ता है और शाश्वत है यानी सनातन है, दिव्य है, आदिदेव है, भगवान है, अजन्म हैं और महानतम हैं।

दशम अध्याय में 10.12-14

अर्जुन उवाच परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्। 

पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्॥ 

आहुस्त्वामृष यः सर्वे देवर्षि नारद स्तथा। 

असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे॥ 

सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव। 

न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः॥

Shrimad Bhagwat Geeta yani siddhi yog kya hai?

श्रीमद् भागवत गीता का सिद्ध योग विद्यार्थी के अंतर्मन में जब उदय होता है तो मनुष्य अज्ञान से ऊबर जाता है।

हम सब कई तरह की मुसीबतों से घिरे रहते हैं। अर्जुन की तरह चिंताएं हमें घेरी रहती हैं। हम अर्जुन की तरह भ्रमित भी होते हैं, सत असत में फंसे रहते हैं, अपने पराए में फंसे रहते हैं, तब हमारे मन में यह जिज्ञासा पैदा होती है कि हम कौन हैं और क्यों इस तरह की अलग-अलग तरह की स्थितियां हमारे जीवन में आ रही हैं? कभी खुशी है कभी दुख है इन सब का वास्तविक कारण क्या है?

जब यह जिज्ञासा पैदा होती है तब ब्रह्म का चिंतन शुरू होता है, जब ब्रह्म का चिंतन शुरू होता है तो ब्रह्म से मनुष्य का निष्क्रिय संबंध सक्रिय हो उठता है. इसी सक्रियता से भगवान श्री गुरुदेव के रूप में मिलते हैं और अपने अनुग्रह से हमारे अंदर की भगवत गीता में वर्णित योग शक्ति को जागृत कर देते हैं और ज्ञान की यह यात्रा शुरू हो जाती है।

अर्जुन भगवान श्री कृष्ण का पहला सिद्ध योग विद्यार्थी था, क्योंकि अर्जुन भगवान के सामने था इसलिए अज्ञान से ज्ञान तक की यात्रा में उसे बहुत अधिक समय नहीं मिला। श्री भगवान ने श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान से उसे उसी समय में अज्ञानी से ज्ञानी बना दिया और अपने वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार करा दिया।

क्रमशः अतुल विनोद- 7123027059


 

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