Published By:धर्म पुराण डेस्क

जप की महिमा

जप, भगवान के नाम या मंत्र का आवश्यक और नियमित उच्चारण करने का अभ्यास है, जिससे हम आत्मा के साथ गहरा संबंध बना सकते हैं और मानसिक शांति प्राप्त कर सकते हैं। जप के माध्यम से हम अपने मन को आत्मा की दिशा में ध्यान करते हैं और अपने आदर्शों और मानसिक श्रेष्ठताओं को प्राप्त करने का मार्ग प्राप्त करते हैं।

गीता में जप की महत्वपूर्णता

श्रीकृष्ण ने भगवत गीता में यज्ञ की अनेक प्रकार की महत्वपूर्णता को बताया है, और उन्होंने यज्ञों में जप यज्ञ को भी महत्वपूर्ण माना है। यहां "जप यज्ञ" का तात्पर्य है कि व्यक्ति अपने मननशील उच्चारण से अपने मन को नियंत्रित करके आत्मा के प्रति भक्ति और समर्पण रखे।

श्री राम चरित मानस में जप की महत्वपूर्णता

श्री राम चरित मानस में भी जप की महत्वपूर्णता का वर्णन किया गया है। कलयुग में भगवान का नाम ही आधार है, और उन्होंने यह कहा है कि जो व्यक्ति भगवान के नाम का जप करते हैं, वे संसार सागर से पार हो जाते हैं।

जप का महत्व और लाभ

जप का उच्चारण और उच्चारण की गति से हमारे मन को शांति मिलती है और हम आत्मा के साथ एकीभूत होते हैं। जप के माध्यम से हम अपने आत्मा के साथ एक संबंध स्थापित करते हैं, जिससे हमारी आत्मा की उच्चता और श्रेष्ठता को अधिक अवगति होती है।

इस प्रकार, जप एक महत्वपूर्ण ध्यान विधि और उपलब्धि है जो हमें आत्मा के प्रति अधिक आदर्श और समर्पण विकसित करने में मदद करती है। यह हमें आत्मा के निकटतम स्वरूप का अनुभव करने में मदद करता है और हमें सच्चे आनंद और शांति की प्राप्ति करने में मदद करता है।

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