ओंकार - जप का अपना महत्व है। जिस ओंकार की महिमा सारे वेद गाते हैं, तपस्वी जिसका बखान करते हैं और ब्रह्मचारी जिसके लिए घोर तपस्या करते हैं, वह शब्द केवल ॐ ही है। मुंडक - उपनिषद में- "अन्धकार से पार होने के लिए यह ओंकार का ध्यान तुम्हारे लिए कल्याणकारी हो।
"स्वामी रामतीर्थ के शब्दों में- "वह सुखी है जो ओंकार में निवास करता है, उसमें गति प्रदान करता है और अपनी सत्ता रखता है। "गुरु नानक देव के शब्दों में -- "वह परमेश्वर जिसका सत नाम ओंकार है अथवा ओंकार ही सत नाम ईश्वर का है। वह सृष्टिकर्ता तीनों कालों -- भूत, भविष्य और वर्तमान है। वह अपने आप होने वाला, भय रहित और बैर रहित है, जो अजन्मा और अमर है; उसी का जाप गुरु-कृपा से करो। वह परमात्मा आदि में सच था, वर्तमान में भी सत है और भविष्य में भी सत ही होगा।
"स्वामी दयानंद की दृष्टि में -- "ओम इस परमात्मा के नाम का अर्थ - विचार कर नित्य- प्रति जप किया करें। अपनी आत्मा को परमेश्वर की इच्छानुसार समर्पित कर दें। "अत: ओंकार का जाप, मनन तथा ध्यान करें एवं जीवन में उसकी विराटता को धारण करके जीवन सार्थक करें।'
हिंदी विश्वकोष' में नगेन्द्रनाथ वसु लिखे हैं - "ॐ ही हमारे धर्म-शास्त्र की भित्ति है। जिसने ओंकार को समझने की चेष्टा की, उसी ने धर्म की कुछ बातें जान पाई हैं। "बौद्ध धर्म- शास्त्र में भी ॐ शब्द व्यवहृत हुवा है, वे 'ओं हन हुं' का प्रयोग करते हैं। इन तीन शब्दों का चयन इनके बुद्ध, धर्म और संघ से लगाते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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