एक मित्र से धर्म के विषय में बातचीत हो रही थी. बातचीत में महाराष्ट्र के ठाड़े जिले में गणेशपुरी के महान योगी स्वामी नित्यानंद का ज़िक्र आया. मैंने उनका उल्लेख भगवान् नित्यानंद कहकर किया. उन्हें भगवान् ही कहा जाता है. यह सुनकर मेरे मित्र बोले,कि यार हम लोग हर किसीको भगवान् कह देते हैं. आख़िर कितने भगवान् हैं? क्या कोई मनुष्य भगवान् हो सकता है? मैं उसके मन के भ्रम को समझ गया. मैंने उसे समझाया, कि ईश्वर और भगवान् शब्द के सही अर्थ नहीं मालूम होने के कारण बहुत लोगों को इस विषय में भ्रम होता है. ऐसा ही तुम्हारे साथ हुआ है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हम लोग अपने शास्त्रों को नहीं पढ़ते. वास्तविकता यह है, कि सनातन धर्म में एक ही ईश्वर को माना जाता है. उन्हें ईश्वर और उससे भी अधिक शास्त्रीय भाषा में ब्रह्म, परब्रह्म या परमेश्वर कहा जाता है. वह एक ही है, सर्वव्यापी है, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान हैं. बाकी जिन रूपों की पूजा होती है, वे सभी उन्हीं एक परमेश्वर के विभिन्न स्वरूप होते हैं. सबके मूल में उन्हीं का भाव होता है. सारे प्रणाम उन्हीं को किये जाते हैं, माध्यम कोई भी हो. लेकिन मेरे मित्र का मुख्य प्रश्न था, कि क्या कोई मनुष्य भगवान् हो सकता है? मैंने उन्हें बताया, कि जिस व्यक्ति में भगवत्ता आ जाती है, उसे भगवान कहा जा सकता है और कहा जाता है. ऐसा ज़रूरी नहीं है,लेकिन कहा भी जाता है. भगवत्ता, यानी उस व्यक्ति में अनेक ऐसे गुण आ जाते हैं, कि वह साधारण मनुष्य की स्थिति से ऊपर उठ जाता है. ऐसे व्यक्ति के बारे में श्रीमदभगवतगीता में श्रीकृष्ण ने बहुत विस्तार से बताया है. और भी ग्रंथों में इन गुणों और इनसे युक्त व्यक्तयों के बारे में बहुत स्पष्ट उल्लेख मिलता है. इस विवरण के अनुसार, जो व्यक्ति किसी भी जीवात्मा के साथ द्वेष नहीं रखता, सबके साथ स्वार्थरहित व्यवहार करता है, बिना कारण सबसे प्रेम करता है, सबका कल्याण चाहता है, जिसे किसीसे मोह या आसक्ति नहीं होती, जो पूरी तरह अहंकार से रहित है, दु:ख और सुख दोनों में जिसका चित्त समान रहता है और जिसने अपनी सभी इन्द्रियों को वश में कर लिया है, ऐसे व्यक्ति को भगवत्ता प्राप्त माना जाता है. वह हर क्षण सिर्फ ईश्वर के ध्यान और चिन्तन में लीन रहता है. ऐसा व्यक्ति कभी कोई ऎसी बात नहीं करता, जिसके कारण किसीको उद्वेग हो. वह स्वयं भी कभी उद्वेग को प्राप्त नहीं होता. वह अपना अहित करने वाले के प्रति क्षमावान होता है. बाहर और भीतर से शुद्ध रहता है. किसीके साथ पक्षपात नहीं करता. वह संकल्प-विकल्प रहित होता है. अपने किसी भी कार्य में स्वयं को कर्ता नहीं मानता. ऐसे व्यक्ति के चित्त की अवस्था इतनी ऊँची हो जाती है, कि उसके द्वारा बोली गयी हर बात सत्य होती है. वह यदि किसी बात का संकल्प भी कर ले, तो उसे पूरा करने में श्रृष्टि की सारी शुभ शक्तियां लग जाती हैं. जो लोग उसके पास जाकर अपनी कोई समस्या का कष्ट बताते हैं, वह उनके प्रति करुणावान होता है. उसके द्रवित होने से उपजे शुभ अन्कल्प के कारण दुखी लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं. जो लोग बिना किसी इच्छा के उसके पास जाते हैं, उन्हें उससे इश्वर की भक्ति का प्रसाद बिना माँगे प्राप्त हो जाता है. इस तरह के गुणों से युक्त व्यक्ति को भगवत्ता प्राप्त कहा जाता है. जिस व्यक्ति में ऎसी भगवत्ता आ जाती है, उसे भगवान् कहा जाता है. गणेशपुरी के स्वामी नित्यानंद इसी कोटि के महात्मा थे, इसलिए उन्हें भगवान् कहकर संबोधित किया जाता है. वह अवधूत स्थति को प्राप्त थे. यानी उनके लिए सोना और पत्थर एक समान थे. ऐसे और भी संत-महात्मा हुए हैं, जिन्हें भगवान् कहकर संबोधित किया जाता है, जैसे भगवान् बुद्ध, भगवान् महावीर, भगवान् दत्तात्रेय, भगवान् शंकराचार्य आदि. संतों को भगवन भी कहा जाता है. इस शब्द के सही अर्थ का ज्ञान नहीं होने के कारण दूसरे धर्मों के लोग ही नहीं, बल्कि, सनातन हिन्दू धर्म को मानने वाले भी भ्रमित हो जाते हैं. वे इस दुष्प्रचार के शिकार हो जाते हैं, कि तुम्हारे यहाँ हर किसीको भगवान् कह दिया जाता है. क्या इंसान भगवान हो सकता है? मित्रो, जीव कभी इश्वर या उनके समान नहीं हो सकता. लेकिन वह उन्हीं का अंश है. उनके प्रकाश से ही उसमें चेतना है, जो चित्त में मल के कारण ढँकी हुई है. इस मल को दूर कर अपने शुद्ध-बुद्ध रूप को जो जान लेता है, उसे भगवान् कहा जाता है. यदि कभी आपसे इस तरह की बात करे, या आपको इस प्रकार की बातों से भ्रमित करना चाहे, तो आप उसे इसका सटीक उत्तर देते हुए, भगवान् और ईश्वर में भेद को समझाकर उसका मुँह अवश्य बंद करें. अपने धर्म की अन्य बातों को समझने के लिए ज़रूरी है, कि आप अपने शास्त्रों को पढ़ें, संतों के साथ का लाभ प्राप्त करें और उनसे सच्चे मन से जिज्ञासा करें. आपको सारे उत्तर बहुत सटीक रूप में मिल जाएँगे.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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