इसका समाधान यह है कि भगवान अवतार लिए बिना ये काम नहीं कर सकते, ऐसी बात नहीं है। यद्यपि भगवान अवतार लिए बिना अनायास ही यह सब कुछ कर सकते हैं और करते भी रहते हैं, तथापि जीवों पर विशेष कृपा करके उनका कुछ और हित करने के लिये भगवान् स्वयं अवतीर्ण होते हैं।
अवतार काल में भगवान के दर्शन, स्पर्श, वार्तालाप आदि से, भविष्य में उनकी दिव्य लीलाओं के श्रवण, चिंतन और ध्यान से तथा उनके उपदेशों के अनुसार आचरण करने से लोगों को सहज ही उद्धार हो जाता है। इस प्रकार लोगों का सदा उद्धार होता ही रहे, ऐसी एक रीति भगवान अवतार लेकर ही चलाते हैं।
भगवान के कई ऐसे प्रेमी भक्त होते हैं, जो भगवान के साथ खेलना चाहते हैं, उनके साथ रहना चाहते हैं। उनकी इच्छा पूरी करने के लिये भी भगवान अवतार लेते हैं और उनके सामने आकर, उनके समान बनकर खेलते हैं।
जिस युग में जितना कार्य आवश्यक होता है, भगवान उसी के अनुसार अवतार लेकर उस कार्य को पूरा करते हैं। इसलिये भगवान के अवतारों में तो भेद होता है, पर स्वयं भगवान में कोई भेद नहीं होता।
भगवान के लिए न तो कोई कर्तव्य है और न उन्हें कुछ पाना ही शेष है, फिर भी वे समय-समय पर अवतार लेकर केवल संसार का हित करने के लिये सब कर्म करते हैं। इसलिये मनुष्य को भी केवल दूसरों के हित के लिये ही कर्तव्य-कर्म करने चाहिए ।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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