 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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प्रस्तावना:
ईश्वर वह सर्वशक्तिमान सत्ता है जो प्रेम, करुणा, न्याय, और ज्ञान की अनंत खान हैं। उन्हें न्यायशील स्वामी कहा जाता है, जो किसी भी आत्मा के साथ अन्याय नहीं करते। इस लेख में, हम उनकी इस नैतिकता और प्रेमभरी स्वभाव को समझेंगे जो हमें आत्मिक सुधार और उन्नति में मदद करते हैं।
ईश्वर का स्वरूप:
ईश्वर का स्वरूप प्रेम, करुणा, न्याय और ज्ञान से भरपूर है। उन्हें स्वर्ग के न्यायशील स्वामी कहा जाता है क्योंकि उनकी शक्तियां सत्य और नैतिकता की ओर मुख करती हैं। वे कभी भी किसी भी आत्मा के साथ अन्याय नहीं करते और उनका उद्देश्य सबकी सुरक्षा और समृद्धि है।
ईश्वर की इच्छा:
ईश्वर की एकमात्र इच्छा हमेशा हमारी उन्नति में मदद करने की होती है। उनका प्रेम हमें सच्चे और सत्यपरायण जीवन की ओर प्रेरित करता है। उनका संदेश है कि जीवन का सबसे उच्च लक्ष्य आत्मा के साथ संबंध स्थापित करना है और उसे अपने द्वारा निर्मित उच्च नैतिकता के साथ धरोहरित करना है।
ईश्वर के मार्गदर्शन:
ईश्वर हमें अपने कुविचारों से छुटकारा पाने, अपनी आत्मा को शुद्ध करने, और खुद को खुशहाल बनाने में मार्गदर्शन करते हैं। उनका संदेश है कि ध्यान और साधना के माध्यम से हम अपनी आत्मा को स्वयं के साथ मेल कर सकते हैं और विशेष रूप से उस उच्च शक्ति के साथ जुड़ सकते हैं जो प्रेम और न्याय का स्रोत है।
मददगार स्वामीजी:
ईश्वर के पास कई मददगार स्वामीजी होते हैं जो निम्नतम लोकों की आत्माओं का भी मार्गदर्शन करते हैं। इन स्वामीजीओं के माध्यम से हमें सत्य और धर्म का पालन करने की शिक्षा मिलती है, जो हमें उच्चतम लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में मार्गदर्शन करती हैं।
निष्कलंकता और सुख:
ईश्वर की करुणा और प्रेम से हम अपनी आत्मा को शुद्ध करके उच्चतम स्थानों की प्राप्ति की दिशा में बढ़ सकते हैं। इसका परिणाम है आत्मिक निर्मलता और अद्वितीय सुख।
समाप्ति:
इस लेख से हम समझ सकते हैं कि ईश्वर का स्वरूप प्रेम, करुणा, न्याय और ज्ञान के साथ भरपूर है, और उनका एकमात्र उद्देश्य हमारी उन्नति और सच्चे धार्मिक जीवन की स्थापना है। उनकी करुणा और प्रेम हमें सत्यपरायण और सच्चे आत्मिक सुधार की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
लेखक बुक “अद्भुत जीवन की ओर”
भागीरथ एच पुरोहित
 
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