शायद यही कारण है कि चित्रकूट जिले के मडफा किले के कोल्हुआ जंगल में निवास करने वाली देवी चिथरी माई झंडे और नारियल नहीं बल्कि फटे कपड़े से प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मन्नतें पूरी करती हैं।
अमावस्या को चित्रकूट दर्शन करने जाने वाले हर श्रद्धालु अपने घर से पुराने कपड़ों के टुकड़े (चिथरे) अपने साथ ले जाते हैं और दूसरे दिन वापसी पर देवी मां के स्थान पर उसे चढ़ा कर माथा टेकते हैं, ऐसा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस क्षेत्र में अमीरों और गरीबों दोनों के लिए देवस्थान हैं।
लोगों के सामर्थ्य के आधार पर उनके चढ़ौने भी हैं। चिथरी माई को फटे-पुराने कपड़ों से बहुत लगाव है।
बुंदेलखंड के धार्मिक शहर चित्रकूट में कई मठ और मंदिर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ देवता ऐसे भी हैं जो बुंदेलों की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन कर प्रसाद ग्रहण करते हैं और उनकी मनोकामना भी पूरी करते हैं। इन्हीं में से एक है चिथरी माई।
देवी चिथरी माई कोल्हुआ जंगल में बने मडफा किले के पास माजरा खोहना गांव के पास सड़क के किनारे स्थित है।
धार्मिक नगरी चित्रकूट में कामदगिरि से लौटते समय, प्रत्येक भक्त देवी माँ को फटे और पुराने कपड़े चढ़ाकर मन्नत मांगता है। गांव घुरेटनपुर निवासी कहते हैं कि माता चिथरा देवी उनके पूर्वजों के समय से यहां विराजमान हैं और फटे कपड़ों के अलावा अन्य कोई प्रसाद स्वीकार नहीं करती हैं.
गाँव के एक बुजुर्ग ने बताया कि देवी माता को चढ़ौना चढ़ाए जाने को लेकर एक किंवदंती प्रचलित है कि मानपुर गांव में एक दलित परिवार की संतान जीवित नहीं रह पाती थी, तब देवी मां ने उसकी पत्नी को बच्चे के जन्म से पूर्व स्वप्न में कहा था कि यदि वह नवजात शिशु को बिछाए जाने वाले फटे-पुराने कपड़ों का चढ़ौना अमावस्या के दूसरे दिन अर्पित करें तो बच्चे को कुछ नहीं होगा।
ऐसा करने पर उसका वंश चला, तभी से क्षेत्र के लोग इस स्थान पर कपड़ों का चिथरा चढ़ाने लगे और देवी मां का नाम चिथरी माई पड़ गया।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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