परमपिता परमेश्वर अनंत ब्रम्हांड के स्वामी .. अदि तत्व .. परम शिव ..परम पुरुष … निर्गुण हैं … वो कारण हैं कर्ता है उनकी शक्ति … शिव की शक्ति ही सृष्टि है, वही प्रकृति है, वही परम गुरु है|
पैदा होने के लिए गर्भ चाहिए … गर्भ के बिना छोटे से छोटा क्वार्क और क्वान्टा भी पैदा नहीं हो सकता और गर्भ के बिना ब्रम्हा विष्णु और महेश रुपी …त्रिदेव निर्माण, पालन और संहार तत्व भी पैदा नहीं हो सकते|
परम शिव, आदिनाथ की ये शक्ति ही महामाया(योगलीला) है जो शिव की स्पंद शक्ति (वायब्रेशन) से पैदा हुयी|
शिव .. अद्रश्य सत्ता है … उसकी एक से अनेक होने की इच्छा से विश्व की उर्जा संघनित होकर 'पदार्थ" दिखती है|
विश्व की पूरी ऊर्जा(ज्योति) जब अति संघनित (Infinitely dense, tiny ball of matter) हो जाती है तो एक अंडे(लिंग) की तरह दिखती है| ये अंडाकार संघनित मैटर ही शिव की शक्ति है| यही व्यष्टि है| यही हिरण्यगर्भ है| इसी की हम पिंडी के रूप में पूजा करते हैं| यही शिव लिंग है| जो पुरुष और प्रकृति के समागम का प्रतीक है|
शिव का ये स्थूल गर्भ ही जगत पैदा करता है| ये अंडाकार गर्भ, शिव की स्पन्द शक्ति से उद्वेलित होकर अपने अंदर से क्वार्क, क्वान्टा, अणु, परमाणु, सितारे, सौर मंडल, गेलेक्सी (Atoms, molecules, stars and galaxies we see today) पैदा करता है|
यही गर्भ जगन्माता है| यही शिव की "पार्वती" है|
इसी गर्भ से पैदा हुयी सृष्टि में पुरुष और स्त्री पैदा होते हैं|
परम पुरुष शिव हैं और परम स्त्री पार्वती हैं| मनुष्य इन्हें अपनी कल्पना शक्ति के अनुसार सामान्य पुरुष और स्त्री रूप में पूजते हैं|
परम स्त्री से ही निर्माण पालन और संहार के तीन देव, तीन तत्व, ब्रम्हा-विष्णु-महेश पैदा होते हैं| ये तीनो तत्व भी तीन शक्ति सरस्वती, लक्मी और काली से कार्य करते हैं|
परम शिव >= शिव+ शक्ति >= पुरुष+ प्रकृति > (ब्रम्हा+सरस्वती) + (विष्णु+लक्ष्मी)+ (महेश+ काली/दुर्गा/पार्वती)
परमेश्वर "शिव" शक्ति के अधिष्ठान हैं प्रकृति, व्यष्टि उनकी शक्ति है| शक्ति शिव के बिना क्रियाशील नहीं| शिव के प्रकाश से ही शक्ति को क्रियाशील होने की उर्जा मिलती है|
दोनों एक दुसरे के Complementary और supplementary हैं|
हम इसी शक्ति की अलग-अलग रूपों में आराधना करते हैं|
शिव की प्रेरणा से सृष्टि का सृजन करने वाली प्रकृति, शक्ति बिग-बैंग के बाद ही क्रियाशील हो जाती है, तब तक सक्रिय और क्रियाशील रहती है जब तक फिर से शिव में विलय ना हो जाए| एक ही शक्ति अनेक रूपों में विभाजित होती है|
उस परम ब्रह्म परमेश्वर परम शिव की शक्ति के इतने रूप हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते|
अग्नि में उष्णता(HEAT) की शक्ति है, तो जल में शीतलता(COLD) की शक्ति है| पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है तो वायु में प्राण की शक्ति है|
इसी शक्ति से मूल कण "क्वार्क"/ क्वांटम, इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बनता है| इसी शक्ति से इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन न्यूट्रॉन नाभिक के चक्कर लगाते हैं| दो या दो से ज्यादा परमाणु मिलकर अलग-अलग तरह के तत्वों का निर्माण करते हैं|
शिव “पर” है और शक्ति “परा” है|
शक्ति को ही वेद पुराण देवी, पराशक्ति, ईश्वरी, मूल प्रकृति कहते हैं|
सृष्टि की उत्पत्ति के समय यह शक्ति आध्याशक्ति के रूप में मौजूद होती है|
यही आद्याशक्ति आगे चलकर त्रिगुणात्मक तीन रूपों में विभक्त हो जाती है|
यह शक्ति सर्व-स्वरूपा, सर्वेश्वरी, सर्व-आधार और परात्पर है|
परम-ब्रह्म "परमेश्वर" निर्गुण और सगुण दो रूपों में मौजूद है|
परब्रह्म (परमेश्वर/ ईश्वर/ परमपिता/परम शिव) = निर्गुण + सगुण
सगुण= निराकार(चेतन) + साकार(जड़)
परमात्मा का सगुण रूप, निराकार(चेतन) और साकार(जड़) रूप में विभक्त हो जाता है|
निराकार(+) और साकार(-) से ही सारे संसार की उत्पत्ति होती है|
ब्रह्म का निर्गुण स्वरूप दिखाई नहीं देता| लेकिन सगुण स्वरूप के निराकार और साकार रूप को हम देख या महसूस कर सकते हैं|
कोई इस सृष्टि को माया कहता है, कोई इसे सत्य कहता है, तो कोई इसे असत कहता है|
कोई इसे ब्रह्म से अलग कहता है, तो कोई ब्रह्म का ही एक स्वरूप कहता है|
इस माया में ही विद्या मौजूद है और इसी में अविद्या|
इसमें सत भी है और इसमें असत भी है|
इसे समझना मुश्किल है इसीलिए इसे अनिर्वचनीय कहा जाता है|
बस तत्व को समझ कर ही हम शक्ति की साधना में सफल हो सकते हैं|
किसी भी रूप में उसकी साधना की जाए तत्व को हमेशा ध्यान में रखा जाए|
माँ ही सबसे पहली गुरु होती है| ये शक्ति ही हमारी माँ है यही गुरु है| इसी का अंश हमारी कुण्डलिनी है, जो जागृत होकर हमारे अंदर ही बैठे शिव स्वरुप (आत्मा ) से मिलाती है
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मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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