 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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हमें ईश्वर के प्रति आभार रखना चाहिए ,क्योंकि वह हमारे सही और गलत कार्यों को पहचानते हैं, और उनका न्याय अंतिम होता है। इस आदर्श में शामिल है कि वे हमें अंदर से जानते हैं, और उन्हें किसी सबूत की जरूरत नहीं होती, यह बताता है कि ईश्वर का न्याय हमेशा सही होता है।
1. न्याय में ईश्वर का साकार रूप:
हमारी दुनिया में होने वाले न्यायों में छोटी-बड़ी तकलीफें और गड़बड़ीयाँ हो सकती हैं, पर ईश्वर का न्याय हमेशा सही होता है। वे हमारी भूलों को भी समझते हैं और हमें उचित दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
2. सत्य का साकार न्याय:
ईश्वर के सामरिक और न्यायिक स्वरूप में हमें यह शिक्षा दी जाती है कि हमें सत्य और न्याय का पालन करना चाहिए। ईश्वर हमारे कर्मों को देखते हैं और हमें उनसे सीखने का अवसर प्रदान करते हैं।
3. छिपाए गए कर्मों का न्याय:
यह आदर्श हमें सिखाता है कि हम जो भी करते हैं और कहते हैं, वह सब ईश्वर के सामने छिपा नहीं सकते। हमें ईश्वर के सामने सच्चाई और ईमानदारी से रहना चाहिए।
4. आत्म-सुधारणा का मार्गदर्शन:
यह सिखाता है कि हमें अपने आत्म-सुधारणा का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि ईश्वर सदैव हमारे साथ हैं और हमें सही मार्ग पर चलने में मदद करते हैं।
इस प्रकार, ईश्वर के आदर्श में विश्वास करना हमें सत्य, न्याय, और करुणा के साथ जीवन जीने की मार्गदर्शन करता है। हमें सदैव ईश्वर के साथ जुड़े रहकर अपने कर्मों को सही मार्ग पर चलाने का प्रयास करना चाहिए।
लेखक बुक “अद्भुत जीवन की ओर”
भागीरथ एच पुरोहित
 
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