प्रस्तावना:
सर्वशक्तिमान ईश्वर का हृदय दयालु और प्रेमभरा है, जिससे मनुष्य उनके प्रेम और उनकी दया का फायदा उठाने लगता है। इस लेख में, हम ईश्वर के प्रेम और न्यायशीलता के सिद्धांत पर विचार करेंगे, जिससे जीवन में सत्य और सच्चाई की दिशा मिलती है।
ईश्वर का हृदय:
सर्वशक्तिमान ईश्वर का हृदय बड़ा दयालु और प्रेमभरा है। उनका प्रेम और सहानुभूति अनंत हैं, जिससे हम सभी जीवों को उनकी असीम प्रेम से लाभान्वित होते हैं।
अवचेतन मन का सिद्धांत:
ईश्वर ने हमें एक अवचेतन मन या अंतःकरण दिया है जो हमारे कर्मों को नियंत्रित करता है। इस सिद्धांत के अनुसार, हम जैसा बोते हैं वैसा ही काटते हैं।
कर्मों का सिद्धांत:
अच्छे के बदले अच्छा और बुरे के बदले बुरा - यह सिद्धांत कर्मों के फल को स्पष्ट करता है। ईश्वर न्याय के सिद्धांत पर आधारित हैं, और यह कहता है कि कोई अन्याय नहीं होता।
न्याय का आदान-प्रदान:
आपका अपना अवचेतन मन आपको सच्चा न्याय दिलाता है। जैसे हम कर्म करते हैं, वैसा ही फल हमें मिलता है, और यही न्याय का आदान-प्रदान है।
कर्म और फल:
कर्मों के अनुसार, हमें आपका ईनाम या सजा स्वतंत्र रूप से मिलता है। इससे हमें अपने कर्मों के परिणाम का अहसास होता है, यदि हम अच्छे और नेतिक कार्य करते है तो उनका परिणाम बेहतरीन ही मिलेंगे।
लेखक बुक “अद्भुत जीवन की ओर”
भागीरथ एच पुरोहित
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