 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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मित्रों ईश्वर का नाम और प्रार्थना चमत्कारिक होती है। प्रार्थना को लेकर सभी धर्म ग्रंथों में काफी कुछ लिखा गया है। आज हम आपको भगवान नाम और प्रार्थना के इसी महत्व को बताने जा रहे हैं।
'ॐ' परब्रह्म का नाम है, परब्रह्म ही है और इसके स्मरण और चिन्तन से परब्रह्म तथा सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यह उपनिषदों में बारंबार बताया गया है। उदाहरणत: प्रश्नोपनिषद् (पञ्चम प्रश्न), मुण्डकोपनिषद् (द्वितीय मुण्डक का दूसरा खंड), माण्डूक्योपनिषद्, कठोपनिषद्, तैत्तिरीयोपनिषद् (शिक्षावल्ली का 8वाँ अनुवाक), छान्दोग्योपनिषद्।
उपनिषदों में जगह-जगह कई सुन्दर प्रार्थनामय मन्त्र भी हैं, जैसे तैत्तिरीयोपनिषद् (शिक्षा) वल्ली, चतुर्थ अनुवाक), ईशावास्योपनिषद् | भगवत गीता में भी आया है कि 'मैं परमात्मा शब्दों में 'ॐ' हूँ और यज्ञों में जप यज्ञ हूँ' (10।25), अर्थात भगवान का नाम जपना सब यज्ञों में सर्वश्रेष्ठ और प्रधान यज्ञ है।
मनु जी ने भी कहा है कि ॐ परब्रह्म ही है और विधि यज्ञ (वेद पाठ ) से जप यज्ञ दस गुना बड़ा है। विधि यज्ञ सहित चार पाकयज्ञ (पितृकर्म, होम, बलि, वैश्वदेव) – ये सब जप यज्ञ के सोलहवें अंश के भी बराबर नहीं हैं; और ब्राह्मण जप करने से ही सब सिद्धियों को पा लेता है, वह चाहे यज्ञादि अन्य कर्म करे या नहीं करें।
पारसियों का धर्म ग्रंथ जेंद अवेस्ता में कई सुन्दर प्रार्थनाएँ है। 'ओर्मज्द यास्त' में आया है कि 'मेरा (प्रभु का) नाम परम पवित्र और परम महिमाशाली है। अर्दिबेहिस्त यास्त में लिखा है कि प्रार्थना अहरिमान के सब प्राणियों से अधिक शक्तिशाली है। यह सबसे महान् और सबसे उत्तम मंत्र है।'
यहूदियों का धर्मग्रन्थ Old Testament भी प्रार्थनाओं से भरा पड़ा है। उसकी एक पुस्तक भजनावली (Psalms) में डेढ़ सौ प्रार्थनाएं हैं। Job में लिखा है कि 'तू प्रभु से प्रार्थना कर और वह तेरी सुनेगा।' 'कोई रथों पर विश्वास करते हैं और कोई घोड़े पर, लेकिन हम तो प्रभु के नाम का स्मरण करेंगे'। मैंने परमात्मा को पुकारा और उसने मेरी सुनी और मेरे सब भयों को दूर कर दिया।'
भगवान नाम और प्रार्थना अंक में श्री ताराचंद जी पांड्या के अनुसार ईसाइयों की धर्म पुस्तक बाइबल के New Testament से भी कुछ वचन नीचे दिये जाते हैं-
'इसलिये मैं तुमसे कहता हूँ कि जब तुम प्रार्थना करते हो तब तुम जिन चीजों को चाहते हो, विश्वास करो कि तुम ''उनको पाओगे।' 'मांगो और तुमको दिया जाएगा; खोजो और तुम पाओगे; खटखटाओ और यह तुम्हारे लिये खुल जायगा; क्योंकि प्रत्येक आदमी जो मांगता है, पाता है; वह जो खोजता है, उसे मिलता है और वह जो (द्वार) खटखटाता है, उसके लिये (द्वार) खुलता है।'
मुस्लिम मत में भी प्रार्थना का खास महत्व है। यह रोजाना का आवश्यक कर्तव्य है। 'परमात्मा के महान् नाम को गाओ'। (कुरान 56/96).
'परमात्मा का नाम बोलो और उसकी पूरी तरह से भक्ति करो।' (कुरान 73/9).
'वह समृद्ध बनता है जो अपने-आपको शुद्ध बनाता है और प्रभु नाम का स्मरण करता है और प्रार्थना करता है।' (कुरान 87/15-16).
'स्वर्ग की कुंजी प्रार्थना है और प्रार्थना की कुंजी पवित्रता है।' 'ऐ तू जो प्रार्थना करता है, माँग और यह तुझको दिया तू 'जाएगा।' (हदीस, मिस्कत-उल-मस्वीह).
'प्रार्थना ईमान लाने वाले का हथियार है।' (अली इब्नअबु तालिब, खलीफा अली).
बौद्ध धर्म में भी प्रार्थना का महत्व है। तिब्बत, नेपाल आदि में बौद्ध धर्मानुयायी ॐ मणि पद्मे हूँ' की या बुद्ध व बोधिसत्वों के अन्य नामों की माला चर्खियों आदि पर जपते हैं।
जैन धर्म में भी भक्तामर स्तोत्र, विषापहार, कल्याण मन्दिर आदि अनेक प्रार्थना-स्तोत्र हैं, जिनमें तथा अन्य अनेक ग्रंथों में भगवान की प्रार्थना से या उनके नाम-स्मरण से ही पापों के नष्ट हो जाने एवं संकट दूर हो जाने का वर्णन है। जैन धर्म का सर्वोपरि मन्त्रराज नमस्कार-मंत्र भी पञ्च परमेष्ठी का नाम रूप ही है।
भगवत प्रार्थना तथा भगवन्नाम के विषय में ऊपर जो विविध धर्मों के वचन दिये गये हैं, ऐसे वचन प्रत्येक धर्म में अगणित हैं और उन सबका इङ्गित करना भी अशक्य ही है।
 
 
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