 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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धातुएँ प्रमुख रूप से छः प्रकार के होती हैं। इनके अतिरिक्त कौसा और पीतल अलग-अलग बनाए जाते हैं। लेकिन भारत में अष्टधातु का विशेष महत्व है। इनमें सोना, चाँदी, तांबा, जस्ता, लोहा, राँगा, शीशा एवं पारद इन सभी को मिलाकर अष्टधातु कहा जाता है।
ज्योतिष में सभी धातुओं को किसी न किसी ग्रह के लिए शुभ बताया गया है। इनके यंत्र या आभूषण पहनने से शुभत्व में वृद्धि होती है। किन ग्रहों को कौन सी धातु प्रिय है, इसका विवरण निम्नांकित है :
सूर्य को - स्वर्ण और ताम्र,
चंद्रमा को - रजत और स्वर्ण,
मंगल को - ताम्र और स्वर्ण,
बुध को - कांस्य और स्वर्ण,
गुरु को - रजत व स्वर्ण,
शनि को - लोह या अष्टधातु,
राहु को - शीशा,
केतु को - लौह या स्वर्ण,
प्रत्येक जातक तांबा, लोहा, चांदी और सोने में से किसी एक पाए में जन्म लेता है। जातक जिस पाए में जन्म लेता है उन सभी के अलग-अलग परिणाम मिलते हैं।
आयुर्वेद में स्वर्ण को हृदय के लिए बलकारक और मिर्गी रोग में लाभकारी माना जाता है। स्वर्ण शलाका से नाक या कान छेदने पर छिद्र बंद नहीं होता और अंग भी नहीं पकता है। जैसे कुश का आसन पवित्र होता वैसे ही स्वर्ण से स्पर्श कराया गया जल का स्नान शरीर की शुद्धि करता है।
रजत मानसिक बल प्रदाता है। ताम्र पात्र में जल पीना स्वास्थ्य वर्धक होता है। लौह धारण करने से या सिरहाने रखने से बड़बड़ाना दूर होता है और दुश्यान नहीं आते हैं। शीशा धारण करने से पुराना घाव जल्दी भरता है। पारा शिव शंकर का वीर्य है और अपार गुणों का स्वामी भी है।
रसायन के क्षेत्र में विशेष प्रक्रिया द्वारा इसका क्षेत्र स्वर्ण चांदी के निर्माण से कायाकल्प एवं मृत संजीवनी निर्माण तक है। शिव को पारा बहुत प्रिय है। प्रत्येक शुक्रवार को पारा शिवलिंग पर चढ़ाने से पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति होती है। मन के संताप दूर होकर यश, कीर्ति, धन, वैभव में बढ़ोत्तरी होती है।
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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