 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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मृत्यु एक सच्चाई है मृत्यु जीवन का अंत नहीं है वास्तव में मृत्यु है ही नहीं मृत्यु सिर्फ वस्त्र बदलने की प्रक्रिया है. शरीर एक वाहन है जब वाहन चलाने योग्य नहीं रहता तो मालिक उस वाहन को चेंज कर देता है इसी तरह से आत्मा शरीर रूपी वाहन को शरीर के अनुपयोगी हो जाने पर बदल देती है.
भारतीय धर्म शास्त्रों में जिस जीवन की बात की गई है उस जीवन में मृत्यु नाम की कोई चीज नहीं है शरीर के जीवन में मृत्यु है लेकिन आत्मा के जीवन में मृत्यु नहीं है.
अपनों के बिछड़ने का दुख किसको नहीं होता! फिर भी मृत्यु एक सच्चाई है और इसे स्वीकार करना ही पड़ता है। एक-न-एक दिन सबको इस दुनिया से जाना होता है। जब कोई अपना इस दुनिया से विदा होता है तो दिल पसीज जाता है क्योंकि उसके साथ मोह और प्यार जुड़ा रहता है। चाहे वह प्यार और मोह स्वार्थवश ही क्यों न हो दुख तो होता ही है।
जब शरीर बना तो वह शुद्ध रूप में था लेकिन जीवित काल में मानव द्वारा शरीर से बहुत पाप होते हैं। इस कारण शरीर के तत्व अशुद्ध हो जाते हैं।
मृत्यु के समय जब वह शरीर प्रकृति को अर्पित किया जाता है तो एक-एक विधि अपनाई जाती है। जैसे- मृत शरीर के मुख में गंगाजल डालने से जल तत्व का शुद्धिकरण, घी के प्रयोग से अग्नि तत्व का शुद्धिकरण, चंदन के द्वारा वायु का शुद्धिकरण, तुलसी के द्वारा आकाश तत्व का शुद्धिकरण और बची हुई राख को गंगा आदि में प्रवाहित करने से भूमि तत्व का शुद्धिकरण माना जाता है।
मृत्यु के पीछे दुःखी होकर रोते रहने से दिवंगत आत्मा को भी दुःख होता है। आत्मा किसी-न-किसी रूप में यह सब देखती है। जितना मोह-माया में पड़कर दुःख व रुदन होगा आत्मा को उतना ही कष्ट होता है। इसी तथ्य पर एक कहानी है जो इस बात को संकेत करती है कि दिवंगत आत्मा के लिये रोने से उसे दुःख पहुंचता है।
एक छोटे से गांव में एक सुन्दर सी लड़की थी। वह अपनी मां के साथ गांव में खुशीपूर्वक रहती थी। दोनों में इतना प्यार था कि एक-दूसरे के वगैर कभी नहीं रहती थीं। दोनों एक-दूसरे के लिये जान तक भी देने को तैयार थीं।
लेकिन एक दिन अचानक उस लड़की की मां मर गयी। लड़की का अपनी मां से इतना प्यार था कि वह मरने के बाद भी उसे याद करके दिन-रात रोती रहती थी। एक दिन उस लड़की ने सपने में कुछ आत्माओं को सूक्ष्म शरीर में देखा। उनके बीच उसकी मां भी थी जिसने सिर पर काले पानी से भरा एक बड़ा घड़ा उठाया था और वह बहुत उदास और दुखी लग रही थी।
यह देख लड़की को और अधिक दुःख हुआ और वह पहले की अपेक्षा और ज्यादा रोने व दुखी रहने लगी। संयोगवश लड़की ने फिर से दूसरे दिन सपने में उस आत्मा के सूक्ष्म शरीर वाले समूह को देखा। लेकिन उसकी मां के सिर पर उस बार दो बड़े काले पानी के घड़े थे। लड़की यह देखकर अत्यंत दुखी और व्याकुल हो उठी।
फिर भी उसने हिम्मत करके पूछ लिया- "मां तुम इतनी उदास क्यों हो, तुमने सिर पर यह क्या उठाया हुआ है? आपने सिर पर कल एक ही घड़ा था। और आज दो घड़े क्यों हैं?" मां ने लड़की से कहा- "मेरी उदासी का कारण तुम्हारा दुःख है और इन दो घड़ों में तेरे आंसू भरे हैं। बेटी, तुम रोना बंद करो नहीं तो मुझे ज्यादा तकलीफ मोगनी पड़ेगी।" यह सुनकर लड़की ने तुरंत रोना बंद कर दिया।
 
 
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