ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं,
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि।।
यहाँ एक महान श्लोक है, जो ब्रह्मानंद स्वरूप और परम सुख का प्रदाता सदगुरु की महिमा को स्वरूप में लेता है। इस श्लोक के माध्यम से, हम सदगुरु की पूजा करते हैं, जो हमें आत्मज्ञान की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं और जीवन को सार्थक बनाने का उदाहरण प्रदान करते हैं।
1. आत्मा के स्वरूप में आनंद:
गुरु को ब्रह्मानंद स्वरूप कहा गया है, जिससे ही परम सुख प्राप्त होता है। गुरु वह दिव्य आत्मा है, जो स्वयं आनंद से परिपूर्ण है और इस पूर्णता को हमें सिखाते हैं।
2. द्वन्द्वातीत और आकाश सदृश:
गुरु द्वन्द्वों के पार जाने की शक्ति रखते हैं और उनका स्वरूप आकाश के समान विस्तारशील है। वे हमें यह सिखाते हैं कि जीवन की छोटी-मोटी दुःख-सुख की परेशानियों से परे का दृष्टिकोण अपनाएं।
3. नित्य और अचल:
गुरु हमें बताते हैं कि उनका स्वरूप नित्य और अचल है। इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि आत्मा जीवन के प्रत्येक पहलुओं में स्थित रहती है, अपरिवर्तनीय है।
4. सर्वधीसाक्षिभूत:
गुरु जी को सर्वधीसाक्षि कहा गया है, जिससे हमें यह सिखने को मिलता है कि वे हमारे मन, बुद्धि और अंतरात्मा के साक्षी हैं।
5. भावातीत और त्रिगुणरहित:
गुरु भावों से परे हैं और उनमें त्रिगुणों का कोई प्रभाव नहीं है। वे ज्ञान के माध्यम से हमें सिखाते हैं कि आत्मा भावनाओं से मुक्त और त्रिगुणरहित है।
6. गुरु की पूजा:
इस श्लोक के माध्यम से हम सदगुरु की पूजा करते हैं, जिससे हमें आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और हम उनके मार्गदर्शन में अपने जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भरने का मार्ग सीखते हैं।
इस श्लोक से हमें यह सिखने को मिलता है कि सदगुरु वह दिव्य प्रेरणा हैं, जो हमें आत्मा की अद्वितीयता का आनंद और आत्मज्ञान के मार्ग पर मार्गदर्शन करते हैं। हम उन्हें कृतज्ञता और आदर से नमस्कार करते हैं, जो हमें असीम सत्य की ओर प्रेरित करते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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