व्यापारिक मेला..
ग्वालियर का व्यापारिक मेला: सिंहस्थ के अवसर पर लगने वाले मेले के बाद राज्य में दूसरा सबसे बड़ा मेला, ग्वालियर का व्यापार का मेला है। इस मेले का प्राथमिक उद्देश्य क्षेत्र की व्यापारिक गतिविधियों का विकास व विस्तार है। मेले में व्यापारिक गतिविधियों के अलावा मनोरंजन की भी खूब व्यवस्था होती है।
दिसंबर से जनवरी के बीच लगने वाला यह मेला राज्य के साथ ही आसपास के प्रांतों राजस्थान व उत्तरप्रदेश के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस मेले की शुरुआत तत्कालीन शासक माधव राव सिंधिया ने 1905 में पशु मेले के तौर पर की थी। आज यह मेला 104 एकड़ क्षेत्र में लगता है।
मध्यप्रदेश का आंगन मानों मेलों से भरा हुआ है। मध्यप्रदेश में पर्व, त्यौहार और तिथियों, मेले लगने के प्रसंग के तौर पर आते हैं। वैसे यहां साल भर मेलों का सिलसिला चलता ही रहता है।
1961 में हुई जनगणना के साथ ही देश में मेलों की गणना भी की गई थी। उसके अनुसार मध्यप्रदेश में 1395 मेले लगते थे। ऐसे में माना जा सकता है कि हर दिन तीन-चार मेले कहीं न कहीं लगते ही रहते हैं।
1961 में हुई जनगणना के अनुसार अविभाजित मध्यप्रदेश में मेलों की संभागवार संख्या इस प्रकार थी। भोपाल 129, इंदौर 203, उज्जैन 227, ग्वालियर 161, चंबल 95, जबलपुर 124 बिलासपुर 79, रायपुर 78, रीवा 121, सागर 165 और होशंगाबाद 131 अविभाजित मध्यप्रदेश में इस तरह मेलों की कुल संख्या 1395 होती थी।
1 नवंबर, 2000 को छत्तीसगढ़ के निर्माण के साथ ही, रायपुर और बिलासपुर संभागों में आयोजित होने वाले 157 मेले अब मध्यप्रदेश का हिस्सा नहीं रहे हैं। 1961 की गणना को आधार माना जाए तो अब राज्य में 1238 मेले लगा रहे हैं, निश्चित ही वक्त के साथ कुछ नये मेले चालू हुए होंगे और कुछ बंद हो गए होंगे।
मध्यप्रदेश में जो मेले लग रहे हैं उनमें कुछ यात्री संख्या, अवधि व प्रभाव के अनुरूप बड़े मेले माने जाते हैं। यहां के ज्यादातर मेले धार्मिक और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े हैं। कुछ मेले राष्ट्रीय पर्वों और तिथियों के साथ अपना सरोकार रखते हैं। इस अंचल में वाले मेले अल्पावधि के लिए आयोजित किए जाते हैं, जो उल्लासमय जीवन के प्राण हैं।
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