हरतालिका तीज त्योहार भगवान शिव और देवी पार्वती के पुनर्मिलन को समर्पित है। एक आध्यात्मिक तथ्य के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या की थी। हिमालय पर गंगा नदी के किनारे, देवी पार्वती ने घोर तपस्या की।
देवी की ऐसी दशा देखकर उनके पिता हिमालय भी उदास हो गए थे। एक दिन भगवान विष्णु की ओर से महर्षि नारद विवाह का प्रस्ताव लेकर आए। लेकिन जब देवी पार्वती को इस बात का पता चला तो वे विलाप करने लगीं। उन्होंने अपनी सखी से कहा कि वे भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही है।
इसके बाद, अपने सखी की सलाह पर ही, देवी पार्वती जंगल में चली गईं और उन्होंने खुद को भगवान शिव की आराधना में समर्पित कर दिया। इस दौरान भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र में देवी पार्वती ने रेत से शिवलिंग बनाया और उसके बाद वह भगवान शिव की पूजा-आराधना में डूब गईं। देवी पार्वती की घोर तपस्या को देख, भगवान शिव अपने दिव्य रूप में उनके सामने आए और देवी पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
तभी से, अविवाहित लड़कियों और विवाहित महिलाएं अच्छे पति की कामना के साथ और अपने पति की भलाई के लिए हरतालिका तीज व्रत का वर्त रखती हैं। इस प्रकार से इस व्रत को करके वे भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं और उनका आशीर्वाद भी लेती हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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