शरीर में जब भी इन तत्वों का असंतुलन होता है, रोग पैदा हो जाते हैं। यदि हम इनका संतुलन करना सीख जाये तो बीमार हो ही नहीं सकते एवं यदि हो भी जायें तो इन तत्वों को संतुलित करके आरोग्यता वापस ला सकते हैं।
हस्त-मुद्रा चिकित्सा के अनुसार हाथ तथा हाथों की अंगुलियों और अँगुलियों के बनने वाली मुद्राओं में आरोग्य का राज छिपा हुआ है। हाथ की अंगुलियों में पंचतत्व प्रतिष्ठित हैं।
ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले इसकी खोज कर ली थी एवं उसके उपयोग में बराबर प्रतिदिन लाते रहे, इसलिए वे लोग स्वस्थ रहते थे। ये शरीर में चैतन्य को अभिव्यक्ति देने वाली कुंजियाँ हैं।
मनुष्य का मस्तिष्क विकसित है, उसमें अनन्त क्षमताएं हैं। ये क्षमताएँ आवृत हैं, उन्हें अनावृत करके हम अपने लक्ष्य को पा सकते हैं।
नृत्य करते समय भी मुद्राएँ बनायी जाती हैं, जो शरीर की हजारों नसों एवं नाडियों को प्रभावित करती हैं और उनका प्रभाव भी शरीर पर अच्छा पड़ता है।
हस्त मुद्राएँ तत्काल ही असर करना शुरू कर देती हैं। जिस हाथ से ये मुद्राएँ बनाते हैं, शरीर के विपरीत भाग में इसका तुरंत असर होना शुरू हो जाता है। इन सब मुद्राओं का प्रयोग करते समय वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन का प्रयोग करना चाहिये ।
इन मुद्राओं को प्रतिदिन तीस से पैंतालीस मिनट तक करने से पूर्ण लाभ होता है। एक बार में न कर सके तो दो-तीन बार में भी किया जा सकता है।
किसी भी मुद्रा को करते समय जिन उंगलियों का कोई काम न हो उन्हें सीधी रखे। वैसे तो मुद्राएँ बहुत हैं पर कुछ मुख्य मुद्राओं का वर्णन यहाँ किया जा रहा है, जैसे
(1) ज्ञान-मुद्रा:
विधि- अंगूठे को तर्जनी अंगुली के सिरे पर लगा दे। शेष तीनों उँगलियाँ चित्र के अनुसार सीधी रहेगी।
लाभ - स्मरण शक्ति का विकास होता है और ज्ञान की वृद्धि होती है, पढ़ने में मन लगता है, मस्तिष्क के स्नायु मजबूत होते हैं, सिरदर्द दूर होता है तथा अनिद्रा का नाश, स्वभाव में परिवर्तन, अध्यात्म-शक्ति का विकास और क्रोध का नाश होता है।
सावधानी - खान-पान सात्विक रखना चाहिये, पान- पराग, सुपारी, जर्दा इत्यादि का सेवन न करे। अति उष्ण और अति शीतल पेय पदार्थों का सेवन न करे।
(2) वायु- मुद्रा:
विधि-तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगाकर हलका दबाये। शेष उँगलियाँ सीधी रखें।
लाभ - वायु शांत होती है। लकवा, साइटिका, गठिया, संधिवात, घुटनों के दर्द ठीक होते हैं। गर्दन के दर्द, रीढ़ के दर्द तथा पार्किंसंस रोग में फायदा होता है।
विशेष – इस मुद्रा से लाभ न होने पर प्राण- मुद्रा (संख्या 10) के अनुसार प्रयोग करें।
सावधानी- लाभ हो जाने तक ही करे।
(3) आकाश-मुद्रा:
विधि- मध्यमा अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाये। शेष तीनों अँगुलियाँ सीधी रखें।
लाभ- कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि, हड्डियों की कमजोरी तथा हृदय-रोग ठीक होता है।
सावधानी– भोजन करते समय एवं चलते फिरते यह मुद्रा न करें। हाथों को सीधा रखें। लाभ हो जाने तक ही कर|
(4) शून्य-मुद्रा:
विधि- मध्यमा अंगुली को मोड़कर अंगुष्ठ के मूल में लगाये एवं अंगूठे से दबाये।
लाभ- कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि दूर होकर शब्द साफ सुनाई देता है, मसूड़ों की पकड़ मजबूत होती है तथा गले के रोग एवं थायराइड रोग में फायदा होता है।
(5) पृथ्वी - मुद्रा:
विधि- अनामिका अंगुली को अंगूठे से लगाकर रखें।
लाभ - शरीर में स्फूर्ति, कान्ति एवं तेजस्विता आती है। दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता है, वजन बढ़ता है, जीवनी शक्ति का विकास होता है। यह मुद्रा पाचन क्रिया ठीक करती है, सात्विक गुणों का विकास करती है, दिमाग में शांति लाती है तथा विटामिन की कमी को दूर करती है।
(6) सूर्य-मुद्रा:
विधि- अनामिका अंगुली को अंगूठे के मूल पर लगाकर अंगूठे से दबाये।
लाभ- शरीर संतुलित होता है, वजन घटता है, मोटापा कम होता है। शरीर में उष्णता की वृद्धि, तनाव में कमी, शक्ति का विकास, खून का कोलेस्ट्रॉल कम होता है। यह मुद्रा मधुमेह, यकृत (जिगर) के दोषों को दूर करती है।
सावधानी- दुर्बल व्यक्ति इसे न करे। गर्मी में ज्यादा समय तक न करे।
(7) वरुण-मुद्रा:
विधि- कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे से लगाकर मिलाएं।
लाभ- यह मुद्रा शरीर में रूखापन नष्ट करके चिकनाई बढ़ाती है, चमड़ी चमकीली तथा मुलायम बनाती है। चर्म रोग, रक्त-विकार एवं जल तत्त्व की कमी से उत्पन्न व्याधियों को दूर करती है। मुंहासों को नष्ट करती और चेहरे को सुन्दर बनाती है।
सावधानी अधिक न करें। कफ प्रकृति वाले इस मुद्रा का प्रयोग कम करें|
(8) अपान-मुद्रा:
विधि – मध्यमा तथा अनामिका अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग से लगा दे।
लाभ - शरीर और नाड़ी की शुद्धि तथा कब्ज दूर होता है। मल-दोष नष्ट होते हैं, बवासीर दूर होता है। वायु-विकार, मधुमेह, मूत्रावरोध, गुर्दे के दोष, दांतों के दोष दूर होते हैं। पेट के लिये उपयोगी है, हृदय-रोग में फायदा होता है तथा यह पसीना लाती है।
सावधानी – इस मुद्रा से मूत्र अधिक होगा।
(9) अपान वायु या हृदय-रोग- मुद्रा:
विधि-तर्जनी अंगुली को अंगूठे के मूल में लगाये तथा मध्यमा और अनामिका अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग से लगा दे।
लाभ- जिनका दिल कमजोर है, उन्हें इसे प्रतिदिन करना चाहिये। दिल का दौरा पड़ते ही यह मुद्रा कराने पर आराम होता है। पेट में गैस होने पर यह उसे निकाल देती है। सिरदर्द होने तथा दमे की शिकायत होने पर लाभ होता है। सीढ़ी चढ़ने से पाँच-दस मिनट पहले यह मुद्रा करके चढ़े। इससे उच्च रक्तचाप में फायदा होता है।
सावधानी – हृदय का दौरा आते ही इस मुद्रा का आकस्मिक तौर पर उपयोग करें।
(10) प्राण-मुद्रा:
विधि-कनिष्ठा तथा अनामिका अंगुलियों के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाये|
लाभ - यह मुद्रा शारीरिक दुर्बलता दूर करती है, मन को शांत करती है, आँखों के दोषों को दूर करके ज्योति बढ़ाती है, शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाती है, विटामिनों की कमी को दूर करती है तथा थकान दूर करके नवशक्ति का संचार करती है। लम्बे उपवास-काल के दौरान भूख-प्यास नहीं सताती तथा चेहरे और आँखों एवं शरीर को चमकदार बनाती है।
अनिद्रा में इसे ज्ञान - मुद्रा ( संख्या १) - के साथ करें ।
(11) लिङ्ग-मुद्रा:
विधि—चित्र के अनुसार मुट्ठी बांधे तथा बायें हाथ अंगूठे को खड़ा रखे, अन्य उँगलियाँ बंधी हुई रखें।
लाभ – शरीर में गर्मी बढ़ाती है। सर्दी, जुकाम, दमा, खांसी, साइनस, लकवा तथा निम्न रक्तचाप में लाभप्रद है, कफ को सुखाती है।
सावधानी – इस मुद्रा का प्रयोग करने पर जल, फल, फलों का रस, घी और दूध का सेवन अधिक मात्रा में करे। इस मुद्रा को अधिक लम्बे समय तक न करे।
सत्यनारायण जी..
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024