अति परिश्रम, खाली पेट, नंगे सिर धूप में चलने से, थकान, कब्जियत, दुर्बलता आदि के कारण लू की चपेट में आ जाने की संभावना अधिक रहती है। सिर खुला रखने से गर्मी तथा धूप का प्रभाव मस्तिष्क पर शीघ्र होता है और तत्काल ही पूरा शरीर प्रभावित हो जाता है।
गर्मी के दिनों में पसीने द्वारा निकाले गए जल की पूर्ति निरन्तर होती रहनी चाहिए। यदि किन्हीं कारणवश ऐसा नहीं हो पाता है तो लू लगने का खतरा 'लू' बढ़ जाता है। शरीर में उष्णता की मात्रा अधिक हो जाने पर स्वेद-ग्रंथियां कार्य करना बंद कर देती हैं ।
जिसके कारण ऊष्मा का निष्कासन बंद हो जाता है और शरीर का तापमान बढ़ जाता है तथा शरीर तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता खो देता है त्वचा गर्म होकर सूख जाती है। शरीर में पानी की कमी हो जाती है। नाडी कभी तेज, कभी धीमी होने लगती है। शरीर का तापक्रम बढ़ते-बढ़ते 106° फॉ० तक पहुँच जाने पर जीवन खतरे में पड़ सकता है।
चिकित्सा:-
चिकित्सक के आने से पहले निम्न तात्कालिक उपचार करना चाहिये|
(1) रोगी को ठंडे, हवादार और स्वच्छ स्थान पर रखना चाहिये तथा वस्त्रों को ढीला कर दे। साथ ही शरीर का तापक्रम कम करने का प्रयास करना चाहिये।
(2) सिर, हाथ-पैर तथा पेट आदि को बार-बार ठंडे पानी से धोते रहे। उन पर बर्फ के टुकड़ों को रखे। मोटे तौलिये को बर्फ के पानी में भिगोकर शरीर को पोंछते रहे। यह काम तब तक करते रहना चाहिए, जब तक शरीर का तापक्रम सामान्य अवस्था में न आ जाय।
(3) वमन, दस्त, प्यास आदि की स्थिति में पुदीने का अर्क, अर्क कपूर, अमृतधारा आदि पानी में मिलाकर थोड़ी-थोड़ी देर पर चम्मच से देते रहना चाहिए ।
(4) बेहोशी की स्थिति में सीने और गले पर तारपीन के तेल की मालिश करनी चाहिये। गरम पानी में कपड़ा भिगोकर गले पर लपेट दे तथा सूखा कपड़ा बाँध दे, होश आ जाएगा।
(5) कच्चे आम को पानी में उबालकर उसका पना बना ले। इसमें सेंधा नमक, भुना जीरा, पुदीना तथा मिस्त्री आदि मिलाकर पिलाएं। गर्मी के दिनों में स्वस्थ व्यक्ति को भी इसे पीना चाहिये। यह लूकी प्रसिद्ध औषधि है।
गर्मी में तरबूज और खरबूज खाना चाहिये । बाहर निकलने से पहले अच्छी तरह पानी पी ले। अधिक प्रोटीन युक्त भोजन नहीं करना चाहिये। लू से ठीक हो जाने पर भी कुछ दिनों तक सावधानी रखें। धूप में न निकले और खाली पेट न रहे।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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